Monday, September 29, 2008

सुदर्शन फाकिर से एक मुलाकात राजेंद्र राजन से


सुदर्शन फाकिर से एक मुलाकात राजेंद्र राजन से


जून की वह तपती दुपहरी थी जब मैं आठ वर्ष पूर्व सुदर्शन फाकिर से भेंट करने के लिए धर्मशाला से हमीरपुर पहुंचा था। आकाशवाणी के हमीरपुर स्थित एफ.एम. स्टेशन के केंद्र निदेशक विनोद धीर के यहां सुदर्शन फाकिर चन्द रोज के लिए रुके हुए थे। यह बात ताज्जुब में डालने वाली थी कि आंकड़ों के नजरिए से देश-विदेश में तरक्की और खुशहाली के शीर्ष पायदान पर सुशोभित हमीरपुर कस्बा सुदर्शन फाकिर की उपस्थित से कतई बेखबर था। हमीरपुर में विनोद धीर के घर सुदर्शन फाकिर से वह मेरी पहली और आखिरी भेंट साबित हुई।
गायकी में अलग पहचान बनाने के पीछे जगजीत सिंह का फन भले ही क्यों न रहा हो, उन्हे तरक्की के मुकाम पर पहुंचाने में सुदर्शन फाकिर का योगदान सर्वोपरि रहा है। जगजीत सिंह व चित्रा सिंह की अब तक जितनी भी एलबमें निकली है, उनमें अधिकांश गजलें सुदर्शन फाकिर की है। करीब 50 गजलों की रचना फाकिर ने इस जोड़ी के लिए की। 'कागज की कश्ती बारिश का पानी' ने जगजीत सिंह को बुलंदी पर पहुंचा दिया। लोग समझे शायद जगजीत सिंह ने इस जनम में अपने बचपन का अक्स देखा। लेकिन यह सच नहीं है। असल में यह शायर फाकिर का बचपन था, जिसकी धड़कनें उन्होंने फिरोजपुर के समीप अपने उस गांव में सुनी थीं, जहां वे पैदा हुए थे। वहां रेत के टीले थे। वे घरौदे बना-बना कर उन्हे बार-बार मिटाते थे। सुदर्शन फाकिर की गजलों की गूंज 1970 से ही मेरे कानों में थी। जब पहली बार बेगम अख्तर के लिए उन्होंने गजल लिखी थी, 'कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया और कुछ तलखिए हालात ने दिल तोड़ दिया।' इसी गजल का एक मकबूल शेर है, 'हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब। आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया।'
'खुद के बारे में क्या कहूं? फिरोजपुर के नजदीकी एक गांव में पैदा हुआ। पिताजी एम.बी.बी.एस. डाक्टर थे। जालंधर के दोआबा कालेज से मैंने पॉलिटिकल साइंस में 1965 में एम.ए. किया। आल इंडिया रेडियो जालंधर में बतौर स्टाफ आर्टिस्ट नौकरी मिल गई। खूब प्रोग्राम तैयार किए। 'गीतों भरी कहानी' का कांसेप्ट मैंने शुरू किया था। लेकिन रेडियो की नौकरी में मन नहीं रमा। सब कुछ बड़ा ऊबाऊ और बोरियत भरा। 1970 में मुंबई भाग गया।'
'मुंबई में मुझे एच.एम.वी. कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने बेगम अख्तर से मिलवाया। वे 'सी ग्रीन साउथ' होटल में ठहरी हुई थीं। मशहूर संगीतकार मदनमोहन भी उनके पास बैठे हुए थे। बेगम अख्तर ने बड़े अदब से मुझे कमरे में बिठाया। बोलीं, 'अरे तुम तो बहुत छोटे हो। मुंबई में कैसे रहोगे? यह तो बहुत बुरा शहर है। यहां के लोग राइटर को फुटपाथ पर बैठे देखकर खुश होते है।''
'जब मैं बेगम अख्तर से मिला तो मेरी उम्र 24 साल थी, लेकिन उन्होंने मेरी हौंसला-अफजाई की। मैंने उनके लिए पहली गजल लिखी, 'कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया' बेगम साहब बेहद खुश हुई। 1970 से 1974 तक मेरी लिखी कुल छह गजलें एच.एम.वी. कंपनी ने बेगम अख्तर की आवाज में रिकार्ड कीं। मुझे याद है कि उन्होंने मेरी शायरी में कभी कोई तरमीम नहीं की। यह मेरे लिए फक्र की बात थी। एक बात और जो मैं कभी नहीं भूलता। वह कहा करती थीं, फाकिर मेरी आवाज और तुम्हारे शेरों का रिश्ता टूटना नहीं चाहिए।' फाकिर का क्या अर्थ है, पूछने पर उन्होंने कहा 'यह फारसी का लफ्ज है, जिसके मायने हिंदी में चिंतक और अंग्रेजी में थिंकर है।'
फाकिर ने गजलों तक ही खुद को महदूद नहीं रखा। फिल्मों के लिए भी गीत लिखे। 1980 में उनकी पहली फिल्म थी 'दूरियां'। इसमें जयदेव ने संगीत दिया था। 'मेरा एक गीत 'जिंदगी, जिंदगी, मेरे घर आना, आना जिंदगी। मेरे घर का इतना सा पता है..' इसे भूपेन्द्र ने गाया था। इस गीत के लिए मुझे 'बेस्ट फिल्म फेयर अवार्ड मिला था।'' 'जमीन', 'पत्थर दिल', 'नाजायज', 'एक चादर मैली सी', 'दूरियां', 'प्रेम अगन', 'रावण' फिल्मों के अलावा फिरोज खान की 'यलगार' फिल्म के गीत व संवाद सुदर्शन फाकिर ने ही लिखे।
इसे संयोग ही कहा जायेगा कि प्रख्यात गजल गायक जगजीत सिंह, जाने-माने लेखक, नया ज्ञानोदय के संपादक रवीन्द्र कालिया और सुदर्शन फाकिर छठे दशक में जालन्धर के डीएवी कालेज के छात्र थे। तीनों में घनिष्ठ मित्रता थी और अपने-अपने इदारों में तरक्की के शिखर छूने के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया। तीनों सेलिब्रिटीज बने।
पंजाब में 20-22 वर्ष पूर्व जब दहशतगर्दी का माहौल चरम पर था तो सुदर्शन फाकिर विचलित हुए बिना न रह सके। उन्होंने पंजाब के आतंकवाद पर एक गजल लिखी जिसका मिसरा है ''पत्थर के सनम, पत्थर के खुदा, पत्थर के ही इंसान पाये है। तुम शहरे-मोहब्बत कहते हो, हम जान बचा कर आए है।'' जगजीत सिंह की ही आवाज में यह गजल 'पैशन्स' एलबम में एक नगीने सी झिलमिलाती है और पंजाब के उस दौर में ले जाती है जहां सांझ ढलते ही गलियां, मुहल्ले और सड़कों पर सूनापन पसर जाता था।
तकरीबन 73 वर्ष की उम्र में फाकिर ने 18 फरवरी, 2008 को जालन्धर के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली। वे लम्बे अरसे से अस्वस्थ चल रहे थे। एक ऐसा व्यक्ति जिसे लाखों करोड़ों लोगों का भरपूर प्यार मिला। उसने मोहब्बत, जिंदगी और दु:ख को नितांत नये मायने दिए। खासकर अपनी सर्वाधिक मकबूल नजम 'ये दौलत भी ले लो, ये शौहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो वो बचपन, कागज की कश्ती वो बारिश का पानी' ने करोड़ों संगीत प्रेमियों के दिलों में फाकिर ने अपने लिए रातों-रात जगह बना ली। इसी प्रकार बेगम अख्तर के स्वर में उनकी गजल 'इश्क में गैरते जजबात ने रोने न दिया' गजल ने भी मानवीय हृदय की संवेदनशील तारों को छुआ।
सुदर्शन फाकिर जीवन संघर्ष, मानवीयता और आपसी रिश्तों की मर्मस्पर्शता को गंभीरता से गजलों में बुनते है। उनकी गजलें सृजन के व्यापक रैज को पूरी शिद्दत के साथ उभारती है। वे अपने समय के एक संवेदनशील शायर है, जिन्होंने अपने रचनात्मक जीवन में एक बड़ा वितान रचा। वास्तव में फाकिर का मूल्यांकन अभी होना बाकी है।

--------------रजनीश कुमार

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