Saturday, March 28, 2020

।। बिन आंसू रोती लैला।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta 

उस भाव की भाषा क्या, जिसकी कोई परिभाषा ना हो, 
वो एहसास ही क्या, जिसकी रूहानी दिलों में जिज्ञासा ना हो।
हर दरवाजे पर खड़ा वो रूमी क्या, जो लबों से प्यासा ना हो,
शम्स की ही बात वो क्यूं करें, जिसकी हसरतों में आशा ना हो।।

ना पूरब, ना ही पश्चिम, वो तो राहों पर गिरता जैसे टूटा गागर हो, 
कैस की कब्र से छूटा, लाल लहू में लिपटा मानो सूखा सागर हो।
खत्म हुई तलब यार की, फिर भी दिखता जैसे जन्नत का जादूगर हो,
अब तो रेत पर रोती बिन आंसू लैला ,जैसे एक बूंद में पूरा महासागर हो।

छोटी कदमों तले नाचती दुनिया, जैसे हर दस्तक का दर रूठ गया, 
बंद सांकल में बैठा रूमी, मानों हर लफ़्ज की लकीरें टूट गया।।
आदती इबादत की फिराक में, वो खुदा-ए-शरीफ का रास्ता छूट गया,
मर्सिया मोहब्बत का गाते-गाते, मजनूं ही दुनिया से रूठ गया ।।

हिज़्र का बेनिशान लिए खत्म हुई खामोश भाव की भाषा,
गुज़र रहे ज़माने लम्हों की तरह, जहां बची ना इश्क की कोई परिभाषा।।
दर्द के हर दरख्त से बहता दरिया, फिर भी रूमी भटक रहा प्यासा, 
अब रूह की बात रूह से होगी, फिर भी हसरतों में बचेगी ना कोई आशा।। 


कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता

Saturday, March 21, 2020

।।बस करते हैं।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish Baba Mehta

आपको पता है कुछ होने वाला है, 
लेकिन आप उसका इंतजार करते हैं। 
आंखें खोलकर या मुड़कर  

आपको पता है ख्वाहिशें खत्म होने वाली है
लेकिन आप फिर भी सपनों का इंतजार करते हैं।
नींद में सोते हुए या जागकर

आपको पता है हवाओं की रफ्तार खत्म होने वाली है
लेकिन आप फिर भी ना आने वाली तूफान का इंतजार करते हैं। 
घर के अंदर या बाहर रहकर  

आपको पता है ये गगन गुम होने वाला है, 
लेकिन आप बारिश का इंतजार करते हैं  
पानी में खड़े होकर या प्यासे रहकर  

आपको पता है धरती सूखने वाली है 
फिर भी आप फसल के उगने का इंतजार करते हैं। 
हल लेकर या गीली जमीन पर बैठकर। 

आपको पता है जश्न के बाद मातम का शोर होने वाला है
लेकिन आप फिर भी उस हंसी का इंतजार करते हैं  
अकेले में या तन्हाईयों में साथ रहकर।। 

कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता

Thursday, March 19, 2020

।।मरा नहीं, परियों की कहानी सुनता नजर आया।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta

अरसा गुज़र गया, मगर ज़िंदगी का कोई फलसफ़ा नजर ही नहीं आया,
बरसों बाद वक्त ने ली ऐसी करवट, जहां जुगनू भी मुर्दा ही नजर आया।।
सुनसान सड़कों पर बेपरवाह वीरानियां कुछ खुसफुसा कर बतिया रही है
ये क्या,घऱों में बंद ज़िंदा जिस्म,मगर राहों पर हवाओं की साजिश ही नजर आया।। 

सन्नाटाओं की इबादत आसान नहीं,फिर भी हर कोई सजदा ही करता नजर आया, 
बंद जुबां लिए दस्तरखान में बैठा है, फिर भी सूनी आंखों से चीखता ही नजर आया।।
बेबसी की बारात जो निकली , उस रात हर जेब से पुरानी दरख्वास्त जो निकली ,
ना धर्म पूछा ना जात पूछी ,बस हिज़ाबों तले दुआओं की चौखट पर रेंगता ही नजर आया।। 

चार कंधों पर चलने वाली जिंदगी आराम जो करने लगी, ना जाने क्यों वो जागता नजर आया,
मिट्टी में, पानी में, धूप में, ध्यान में, मौत गर्द सी जमी है फिर भी जिंदगी ही क्यूं नजर आया।। 
भागती भीड़ में गुम सा गया था, उड़ती ख्वाहिशों में खो गया था,मगर जिंदा रहने का डर दे गया, 
लौट रहा हूं बरसों बाद सांझ-संकारे,देर हुई,मगर खुली आंखें तो घर का सांकल ही नजर आया।।

अंधेरी गलियों के अहाते तले सूने सब्र को समेट कर, आज हर कोई भीड़ से अकेला ही लौटता नजर आया,
ज़माने को शौक से सुनते-सुनते उमर गुजर गई,लेकिन पहली बार आज अपनी आवाज सुनता नजर आया।।
कैद--हयात मुकम्मल हुआ तो रोशनी गई, मगर उमर के दरवाजे तले वो अकेला ही लड़ता नजर आया,
कौन कहता है कि मौत आएगी तो मर जाएगा, वो तो बस सोते-सोते परियों की कहानी सुनता ही नजर आया।।

कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता