Wednesday, October 3, 2012

काश....काश


Rajnish 'Baba' Mehta  'काश'

काश...काश इतना भारी ना होता 


काश कहना भारी सा लगता है ना
उस रोज भी वजन का बोझ लिए 
उनके काश कहने पर रूका था 
सुकून के समंदर से निकलकर 
यूं ही उनके बाहों में समाने का मन था
फिर क्या हुआ...वो काश की कहानी ?
रोज-रोज कोसता हूं उस काश को
सोचता हूं काश...उसके काश कहने पर रूका ना होता
काश मेरे थिरकते कदम बोझिल ना होते
अब क्या फायदा.
क्यों कोस रहा हूं अपनी जिंदगी को
अब तो बस काश ही बचा है जीने का आखिरी रास्ता 

Friday, April 27, 2012

उस रात की मेरी कहानी



वो कहानी सुनी थी तुमने
कैसे पहली बार तरंगो की झलक
साथ साथ चलने को राजी हुई।
लगता है भूल गए हो तुम
सुनाऊ...ठीक है तो सुनो...
सिर्फ अपनी और उसके लफ्जों को बताउंगा

बातें अभी पुरी नहीं हुई
ऐ रात थोड़ा थम थम के गुजर
क्यों आशियाने में आंधी हुई
क्यों बेसब्री सी हालत हुई 
ऐ रात थोड़ा थम थम के गुजर
उसके जाने का वक्त हो गया
धड़कनें टूटने लगी कुछ कुछ
मन्हूसियत में डूबने लगा सबकुछ
मासूमियत ओढ़े उठने लगी
मानों जिस्म कांपने लगा कुछ कुछ
उंगलियों की सिहरन लिए
उदासी में खोने लगा सबकुछ
लालिमा छाने का वक्त आ गया
झुटपुटे अंधेरों को भी मालूम हो गया
रूह भी बेगानी फिजां में समाने को बेताब हो गया
चादर की सिलवटें भी टूटने लगी कुछ कुछ
कांपती होठों के शब्दों में समाने लगा सबकुछ
पाजेब उठाके हाथों में लिए मुड़ेगी कभी
किस गली खो गई .......पता भी नहीं दे गई
नाराज थी शायद वो मुझसे
अब क्या करूं .जब खो गया सबकुछ मुझसे
जिस्म का हर अंग टूटने लगा कुछ कुछ 
पौ फटी दिन के उजाले में खो गया सबकुछ

                           ऱजनीश कुमार 
                           'BaBa Mehta'
                          The Director's Cut

Friday, March 16, 2012

जगाओ न बापू को, नींद आ गई है










जगाओ ना बापू को नींद आ गई है

जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
अभी उठके आये हैं।,बज़्म-ए-दुआ से
वतन के लिये, लौ लगाके ख़ुदा से शमीम करहानी
टपकती है रूहानियत सी फ़ज़ा से
चली जाती है, राम की धुन, हवा से
दुखी आत्मा, शान्ति पा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है

ये घेरे है क्यों, रोने वालों की टोली
ख़ुदारा सुनाओ न मन्हूस बोली
भला कौन मारेग बापू को गोली
कोई बाप के ख़ूं से, खेलेगा होली ?
अबस, मादर-ए-हिन्द, शरमा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
मोहब्बत के झण्डे को गाड़ा है उसने
चमन किसके दिल का, उजाड़ा है उसने ?
गरेबान अपना ही फाड़ा है उसने
किसी का भला क्या, बिगाड़ा है उसने ?
उसे तो अदा, अम्न की भा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
अभी उठके खुद वो, बिठायेगा सबको
लतीफ़े सुनाकर, हंसायेगा सबको
सियासत के नुक़्ते बतायेगा सबको
नई रोशनी दिखायेगा सबको
दिलों पर सियाही सी क्यों छा गई है ?
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
वो सोयेगा क्यों, जो है सबको जगाता
कभी मीठा सपना, नहीं उसको भाता
वो आज़ाद भारत का है, जन्म दाता
उठेगा, न आंसू बहां, देस-माता
उदासी ये क्यों, बाल बिखरा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
वो हक़ के लिए, तन के अड़ जाने वाला
निशां की तरह, रन में गड़ जाने वाला
निहत्था, हुकूमत से लड़ जाने वाला
बसाने की धुन में, उजड़ जाने वाला
बिना, ज़ुल्म की जिस्से,थर्रा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
वो उपवास वाला, वो उपकार वाला
वो आदर्श वाला , वो आधार वाला
वो अख़लाक़ वाला, वो किरदार वाला
वो मांझी, अहिन्सा की पतवार वाला
लगन जिसकी, साहिल का सुख पा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
कोई उसके ख़ू से, न दामन भरेगा
बड़ा बोझ है, सर पर क्योंकर धरेगा
चराग़ उसका दुशमन, जो गुल भी करेगा
अमर है अमर, वो भला क्या मरेगा
हयात उसकी,खुद मौत पर छा गई है ।
जगाओ ना बापू को, नींद आ गई है । - 2