Tuesday, December 31, 2019

।।जो गुज़र गया वो मेरा था ही नहीं, जो आने वाला है उसे मेरे सिवा कोई पाएगा नहीं।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta


गुजरे हुए लम्हें अदम--राख़ का अफ़साना छोड़ गया, 
अमानत की ख्याल में वो लम्हें हक़ीकत का फ़साना छोड़ गया।।
हर रोज सुबह औऱ शाम होती, मानो उम्र अब धीमी आंच पर होती, 
जो गुजर गया उस साख की तलाश में, सारा जमाना छोड़ गया ।। 

अब तो दस्तक नहीं, मस्तक की टेक है, आने वाली हौसलाई सवेरों की, 
ढ़ल गई सियाह रात, निकला है सूरज, अब बात होगी बौराई बयारों की।। 
आक़िबत की फ़िक्र छोड़ अब तो वक्त आया, आज़िम वाली किस्सों की 
ख़ता ख़त्म कर ख़फा छो़ड़ दिया, अब तो बात होगी नई वाली मज़ार--ख़ुदा की।।

जो गुज़र गया वो मेरा था ही नहीं, जो आने वाला है उसे मेरे सिवा कोई पाएगा नहीं,
अंधी गलियों में अब कोई रोएगा नहीं, जो भोर वाली बात मेरे सिवा कोई सुनाएगा नहीं।। 
नफ़रतों की धूप भले बदन को झुलसा गई, लेकिन दरिया--राख में जलने से मेरे सिवा कोई बचाएगा नहीं, 
नई महफिल में नए चेहरों का लगा मेला है, फिर भी लगा ले शर्त, मेरे सिवा कोई गले लगाएगा नहीं ।।

नई रोशनी में अफ़सानों की फिराक तले, अब तो शब्दों सा ढ़लता जा रहा हूं, 
वक्त के पुराने दिये को बुझाकर, कहानीबाजी की मोम तले पिघलता जा रहा हूं।।
पूरा सफ़र आईनों की ज़द में है, फिर भी नई सोच तले अपनी शक्ल बदलता जा रहा हूं। 
अज़ीम ज़माने की खुशबू खुद की रूह में लिए, अब तो धीरे-धीरे संभलता जा रहा हूं।।

#कातिब  amp; #कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता  

अदम = शून्य, अमानत = धरोहर आक़िबत = अन्त, अज़ीम = महान

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta


Saturday, December 28, 2019

।।लफ्ज़ कभी बेज़ुबान नहीं होती।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta



मुलाक़ात करना है तो मातम का इंतज़ार क्यों,
जाओ कभी गैरत--गाह में फिर सोचना क्यों।। 
कभी राह--तमन्ना पर होगी तेरी-मेरी रवानगी 
फैसला आखिरी, जब केसरिया का लिया 
तो फिर गोशे वाली कब्र के धुएं की फ़िक्र क्यों ।।

अब तो आंधी ने ख्वाबों की आखिरी आशियां भी उड़ा दिए 
मोहब्बत वाली मर्सिया सुनकर जलते चरागों ने खुद को बुझा लिए।। 
बेमान बेबस बनकर नाउम्मीदी का कफ़न अब तो सरेआम यूं ही बिछा दिए
चले जो तुम दीवारों की कगारों पर,नजरें क्या मिली तुम यूं ही मुस्कुरा दिए।।

विरह की वार तले जूलियट समझ सारे शहर में तुम्हारे बुत यूं ही बना दिए
उस रात परवाने से मिलने आई, तो सारे शहर ने अपने-अपने ज़ख्म दिखा दिए।।
लफ़्फाजी की ऐसी जालसाजी थी, मानों फिर नई बेवफाई की कोई साज़िश थी 
ईश्क में ज़िदा होने का डर लिए,मैंने तो अपनी कब्र अपने हाथों से जला दिए।।

अब तक मौत के बाद भी ख़ुद को आज़ाद करने की फ़िराक़ में हूं
उस अंधेरी राह--सफ़र पर ख़ुद को तराशने की फ़िराक़ में हूं।
अब भी ना जाने क्यों आख़िरी सच की तलाश में थोड़ा उलझा हूं
थोड़ी दूर जो मिलेगी शमां उसे अभी से जलाने की फ़िराक़ में हूं।

तेरी इश्क्यारी वाली बातें याद है, कि इबादत की आवाज़ नहीं होती,
वो करवटों तले तुमने ही सिखाया था, कि खुदा की कोई साज नहीं होती।
समेट कर अल्फ़ाज खुद को खुद की ज़ुबान में सोचूंगा,
क्योंकि सब कहते हैं लफ्ज़ कभी बेज़ुबान नहीं होती।। 

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 

Monday, December 16, 2019

।।ये सर क्यों झुक सा गया है ?।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta

ये सर ना जाने क्यों झुक-सा गया है,
चलती राहों पर क्यों रूक-सा गया है ?
गुरूर गर्व था मगर बेबसी बातों में क्यों थी,
सवाल दूसरों से नहीं बस खुद औऱ खुदा से पूछता हूं,
तेज दौड़ तो रहा हूं ,फिर भी ना जाने ये सर क्यों झुक-सा गया है ?

लहू का रंग एक, जिस्म की बनावट एक, 
मातृभूमि की शीष पर जन्म औऱ मरण एक, 
भूख एक, निवाला एक, ज़ुबान एक, आवाज एक,
धरती एक, आसमान एक, इबादत एक, आदत एक, 
फिर भी चलती राहों पर मेरी निगाहें क्यों झुक सा गया है ? 

सवालों की फेहरिस्त लिए चल तो रहा हूं 
लेकिन हौसला क्यों रूक-सा गया है ?

अरसे बाद वक्त ने बेवक्त आवाज दी 
चारों दिशाओं ने अपनी-अपनी परवाह दी 
गगन गूंज कर भरी भीड़ में हिदायत भी दी 
अल्लाह ने बिन मांगे कौम को कयामत भी दी
फिर भी लाल लफ्ज़ के आगे क्यों झुक-सा गया हूं ? 

बिन मांगे मिली मौत, अब हर पल का तोहफा क्यों नज़र आने लगी है,
एक ही धागों से बुनते कपड़े, लेकिन मेरी पहचान क्यों लिबासी होने लगी है ?
मुझको लूटते देख पौरूष, तेरे अंदर वही पुराना शैतान क्यों पलने लगा है, 
ये कैसी मोहब्बत-भरी-दुश्मनी है, जो सारे ज़माने को अंधी आंखों से नज़र आने लगी है। 

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता

Thursday, November 28, 2019

।।कारीगर हूं साहब।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta








Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta




कारीगरों की खामोश बात किसी ने सुनी है अबतक 
हुनर को तराशने का हौसला किसी ने देखा है अबतक !!
हर रोज घिसती किस्मत पर सवार होकर दौड़ा है कोई 
सिलते लफ़्जों की तलहटी तले अब हर रोज चीखता है कोई 
कहता हैकारीगर हूं साहबमेरी हुनर की आवाज सुनता है कहां कोई।।
जो कभी जान ना पाओ तो तोल लेना तराजू के पलड़ों पर 
हंस कर अपना दर्द छुपाना जानता हूं बस इसी कारीगरी पर।।
नसीब ऐसा कि कुछ को कलाकार, तो कुछ को बेकार नजर आता हूं
उंगलियों से गढ़ी तकदीर मगर अब जमाने के लिए बस बाज़ार ही नजर आता हूं। 
किसी की आस पर गुजार रहा हूं जिंदगी, अब तो हर शख़्स को बेईमान नज़र आता हूं,   
उम्मीदों की महफिल में हुनर का तमाशा रोज दिखाकर, अक्सर यूहीं खाली हाथ घर लौट आता हूं।।

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 

नार्थ इस्ट में हजारों कारीगर आज कम पैसों की वजह से अपनी हुनर से समझौता करने पर मजबूर हैं। लकड़ी से बने सामान हमारी घर की शोभा होती है, लेकिन वही सामान नार्थ इस्ट के गांवों में उसे बनाने वालों के यहां कौड़ियों के भाव मिलता है। आसान नहीं होता अपनी हुनर की सही कीमत को हासिल करना। मुश्किल है, बहुत ही मुश्किल, इतना मुश्किल कि ये समस्या कभी हल ना होगी। बात वहां की हो या यहां ही हालात एक जैसे हैं। 

Monday, November 25, 2019

।।हिन्दी मेरी भाषा।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta

आओ कुछ बातें और मुलाकातें हिंदी में हो जाए,
कुछ टेढ़ी लकीरों का आकार हिंदी में हो जाए।
बरसों से सिमटी सपनों का साकार हिंदी में हो जाए,
हर ख़्वाबों भरी ख्वाहिशों का संसार अब हिंदी में बसा लिया जाए।  

हिंदी हमारी सभ्यता संस्कृति की पहचान जो है। 
हिंदी हमारी गंगा जमुनी तहज़ीब की आन जो है। 
हिंदी , हर हिंदुस्तानी का सम्मान है।
जिसके बिना हिंद थम जाए 
ऐसी जीवनरेखा है हिंदी। 
हर हिंदुस्तानी का अभिमान है हिंदी 
हिन्दी, मादर--हिंद की शान है , हिंदी।  
इस धरा पर बहती संगम की हर धारा है हिंदी
जन-भेद का मतभेद मिटाती ऐसी हमजोली है हिंदी। 
सात सुरों का साज सजाती, हर रंगों का मेल कराती है हिंदी
चारों दिशाओं का गठजोड़ , हर धर्मों का एक पाठ पढ़ाती है हिंदी।।
जीवन की आधार है हिंदी , सदियों पुरानी व्यवहार है हिंदी
ली है शपथ, खाई है कसम जिसकी, वो मातृभाषा है हिंदी।। 
हिन्दी मेरी भाषा , हिन्दी मेरी आशा ,
हिन्दी का उत्थान करना, हर हिंदुस्तानी की जिज्ञासा।




हिंदुस्तान में समय-समय पर हिंदी को लेकर विरोध जब जब होता है, तब-तब मैं अपनी मातृभाषा में सिकुड़ना का एहसास महसूस करता हूं। इसकी वजह सिर्फ एक ही है, वो है अपने ही देश के अंदर हिंदी का विरोध। लेकिन आजादी के बाद हिंदी विरोध की जगह धीरे-धीरे सिकुड़ती जा रही है। 
हिंदी की जबरस्त लोकप्रियता का एहसास मुझे उस वक्त हुआ, जब मैं नार्थ इस्ट की यात्रा के दौरान वहां के लोगों को इस भाषा को लेकर उत्साहित देखा। 7 राज्यों वाली नार्थ इस्ट अब 8 राज्यों मे तब्दील हो गई, लेकिन यहां हिंदी पहले के मुकाबले काफी मजबूत अंदाज में दिखाई देती है। अरूणाचल प्रदेश से लेकर मेघालय, सिक्किम से लेकर मिज़ोरम तक हर कोई अपनी लोकल भाषा का प्रयोग तो हर रोज करते हैं, लेकिन जैसे ही उनकी ज़ुबान पर हिंदी आती है , तो हिंदी के साथ एक मुस्कान भी आ जाती है। औऱ ऐसी बात नहीं है कि नार्थ इस्ट में हिंदी आज औऱ कल से बोली जाने लगी है, बल्कि आजादी के बाद सन् 1961 के आस-पास हिंदी ने अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया था। नार्थ इस्ट का अरूणाचल प्रदेश आठ राज्यों में सबसे बड़ा राज्य है। वहां करीब 500 से ज्यादा जनजातियां हैं, जिसकी वजह से वहां बोलियों की संख्या भी ज्यादा है, लेकिन आश्चर्य की बात यै हे कि अरूणाचल में हर जनजाति के लोग हिंदी बोलने को लेकर काफी सहज नजर आते हैं। इतना ही नहीं हिंदी के विकास को लेकर नार्थ-इस्ट के हर राज्य में एक राष्ट्रभाषा प्रचार समिति बनाई गई है। साथ ही कहीं-कहीं हिंदी साहित्य अकादमी भी है, जिनके जिम्मे हिंदी को बढ़ावा देने का है। यहां के कुछ लोगों से जब हिंदी में बात करने का मौका मिला तो फिर कुछ लोगों ने तो यहां तक जानकारी दे डाली कि, 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है  औऱ 10  जनवरी को विश्व हिंदी दिवस – International Hindi Day मनाते हैं। भाई गजब है, औऱ दूसरा गजब तो ये है कि तमिलान्डु में आज भी हिंदी विरोध के स्वर रह-रहकर गूंजने लगते हैं।  1960 के दशक के हिंदी विरोधी आंदोलन जब व्यापक रूप लेने लगा तो, केंद्र ने विवादित प्रावधान को खत्म कर दिया और आश्वासन दिया कि हिंदी किसी पर थोपी नहीं जाएगी, औऱ तब से कुछ ऐसे तबके पैदा हो गए जिनके लिए हिंदी हाशिए पर एक चंद्रबिंदु की तरह है। 
कहानी बहुत है कहने को औऱ लिखने को। लेकिन कभी कभी इशारा समझना ही बेहतर होता है। 

हर कण में है हिन्दी बसी
मेरी मां की इसमें बोली बसी।।
मेरा मान है हिन्दी
मेरी शान है हिन्दी ।।


कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 


Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta





Wednesday, November 20, 2019

।।कभी ना कभी हमारी बात जरूर होगी।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta 


रूह में रहता हूं , हर बात सांसों से कहता हूं ।
फ़िराक़ अश्क की नहीं, आइनों में यू हीं बसता हूं।।
सफर सांझ की हो, तो ही आखिरी बार डरता हूं
सुकून पाने की तमन्ना में, हरपल एक ही लफ़्ज कहता हूं।।
तुम मेरी ख़्वाहिशों को यूं हीं खाक ना बनने देना
जो राख वाली बातें तुम्हें सपनों में साख जैसा सिखाता हूं ।।
ढ़लती शाम वाली पंखों से बिना जुगनुओं वाली रोशनी जो जलाता हूं।
सितारों की ख्वाहिश में, अब अकेली उस चांद की बातें ही बताता हूं,
कि कभी-कभी बादलों से भी अक्स नजर आता है ।
उस धुंधली गुमनाम गलियों से जब भी झांकता हूं
टूटे हुए झरोखों पर हमेशा वही शख़्स नजर आता है ।
फेर लो रोशनी में बुझती चरागों का मुख
जो अब काली रातों में सिर्फ जज़्बात ही नज़र आता है।
अब बस
उम्मीद होगी….
इतंजार होगा…
पुकार होगी….
सफर सांझ की होगी…
हम मिले ना मिलें कभी ना कभी हमारी बात जरूर होगी।




Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta 

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 

Thursday, November 14, 2019

बमहम: बरसों की मेहनत से बनी एक आवाज

Rajnish BaBa Mehta With Unique Instrument BAMHAM

Rajnish BaBa Mehta With Unique Instrument BAMHAM





























खुद से खुद की मुलाकात, अक्सर यूं होती नहीं, 
अपनी हसरतों की तले, कभी खामोश बात होती नहीं।।
उलझे धागों की तरह जिंदगी सुलझाने की तमन्ना तो है 
बिखरे पन्नों पर ख्वाहिशों के, जज़्बात अब समेटी जाती नहीं।।
बेवक्त बेरूखी लिए किसी की धुन पर, अपनी राग छेड़ने की फिराक में हूं
परिंदों की जागती ज़िदगी को देख, अब अपनी उड़ान भरने की इंतजार में हूं।  
लो लिख दिया तुम्हारी बातें, अब तो गुनाहगार होकर भी ठहरने की फिराक में हूं। 
बरसों बीत जाते हैं, कभी कभी एक बात कहने में,
हर बार जमाने गुज़र जाते हैं, कभी-कभी अपनी ख्वाहिश संजोने में।।
उम्र गुजर गई एक सपने को पूरे करने में। 
आज सोचता हूं कई रातों की मेहनत के बाद,
एक साज बनाया, एक श्रृंगार बनाया 

बरसों की मेहनत से, एक आवाज बनाया ।।


नार्थ इस्ट की यात्रा के दौरान नागालैंड के दीमापुर में हमारी मुलाकात मोआ सुबॉंग से हुई। मोआ ने बमहम नाम का एक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट बनाया। जिसके लिए उसे राष्ट्रपति के हाथों नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है। 

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 

Tuesday, November 5, 2019

।। रूह फिर भी ।।

writer & Director Rajnish BaBa Mehta कहानीबाज
writer & Director Rajnish BaBa Mehta कहानीबाज





।। रूह फिर भी ।।

एक रोज नाप लूंगा ज़िदगी 
सफर सांझ होगी फिर भी ।। 
ढूंढ लूंगा ख़्वाहिशें अब 
रास्ते मुड़ती होगी फिर भी ।।
झांक लो तस्वीरों में मेरी 
तिरछी लकीरें होगी फिर भी।।
आना कभी खिड़कियों की सिराहने तले 
घनी अंधेरी रात होगी फिर भी ।। 
ख़्वाबों की तलाश में ख़ातिर खूब हुई 
टूटी है उंगलियां थाम लेना हाथ फिर भी ।। 
पुस्तक लिए बैठा हूं मस्तक की तलाश में 
मिल भी जाऊं गैरों की जमीन पर मुलाकात कर लेना फिर भी ।। 
काली लकीरों ने सूर्ख़ रास्ता दिखा तो दिया 
ना जाने फ़िक्र की तलाश में मन क्यों भटक रहा है फिर भी ।।
उस रोज के आने का डर है जहां मौत मयस्सर है 
बंद होगी जब आंखें ढ़ूंढ़ लेना खुद की रूह को फिर भी।।



कातिब & कहानीबाज 

रजनीश बाबा मेहता 


writer & Director Rajnish BaBa Mehta कहानीबाज

writer & Director Rajnish BaBa Mehta कहानीबाज

Tuesday, October 22, 2019

।। तो ही ज़िंदा हो तुम।।

WRITER & DIRECTOR Rajnish BaBa Mehta 
WRITER & DIRECTOR Rajnish BaBa Mehta
दो दिलों के बीच दीवार हो, तो ही ज़िंदा हो तुम,

खामोश ख़्वाहिशों के बीच जज़्बात हो, तो ही ज़िंदा हो तुम।
अकेली रातों में सीढ़ीयों तले साथ बैठे हो, तो ही ज़िंदा हो तुम,
अंधेरे ख्वाब में दो मुर्दा जिस्म के लब लाल हो, तो ही ज़िंदा हो तुम।

बेबसी बात की नहीं हमरात वाली बेपरवाह सी हो, तो ही ज़िंदा हो तुम,
पहली मुलाकात में जीने लगी आखिरी जिंदगी , तो ही ज़िंदा हो तुम ।
उंगलियों की सिहरन तले हाथों को थामे हाथ, काफिलाओं की सजी जो बारात, 
वो शरमों हया तले झुकती आंखें लिए गुम हो, तो ही ज़िंदा हो तुम ।

रिश्तों की सारी गिरहें खोल, ख़्वाबों को खुद की लबों से बोल,
फिर भी तेरी-मेरी राहों में डर का है साया, तो ही ज़िंदा हो तुम।
गुजरे वक्त को पाने की तमन्ना में, अफसोस की स्याही हुई गहरी, 
कोरे कागजों पर अगर खींची तूने तिरछी लकीरें, तो ही ज़िंदा हो तुम।। 

वो अनजानी राहों पर अनजाना सफर,जानी-पहचानी तारीख छोड़ गया, 
कई रास्तों पर बेनाम रिश्तों की निशानी छोड़ गया, तो ही ज़िंदा हो तुम ।
बंद दरवाजों के पीछे आखिरी रात वाली कई सवालों का जवाब, एक ही छोड़ आया, 
कि तूम रूह बनकर आ जाओ औऱ मैं सुकून हो जाऊं , तो ही ज़िंदा हो तुम।

दो दिलों के बीच दीवार हो, तो ही ज़िंदा हो तुम,
खामोश ख़्वाहिशों के बीच जज़्बात हो, तो ही ज़िंदा हो तुम।
अकेली रातों में सीढ़ीयों तले साथ बैठे हो, तो ही ज़िंदा हो तुम,
अंधेरे ख्वाब में दो मुर्दा जिस्म के लब लाल हो, तो ही ज़िंदा हो तुम।

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता

Monday, October 21, 2019

आखिरी सफर मौत !


Writer & Director Rajnish BaBa Mehta 

जिंदगी एक सफर है 
औऱ हम उसके मुसाफिर 
कारवां भी है 
औऱ हम उसके हमसफर । 
आज यही सोचा है 
रास्ता हमेशा चलता रहता है 
लेकिन कभी वो थकता नहीं । 
पथ भले ही पथरीले हो,
 लेकिन घाव गहरे नहीं। 
चाल भले ही धीमी है 
लेकिन हौसला रफ्तार पर है।
बढ़ने से गुरेज नहीं 
क्योंकि पहुंचने की जल्दी जो नहीं। 
इन सारी खुशियों को समेट कर 
सारी संजीदगियों को सोच लिया 
अब कभी खत्म ना होगी सफर 
क्योंकि बढ़ने से गुरेज जो नही हैं। 
सोच लो आजमा लो 
क्योंकि एक रोज मौत होगी आखिरी सफर।

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 


Friday, September 13, 2019

।। मसर्रत-ए-महफ़िल ।।



WRITER & DIRECTOR RAJNISH BABA MEHTA



ख्वाबों के करीब से कुछ रास्ते यूं ही गुज़र गए 
फासलों के बीच कुछ मुसाफिर यूं ही रह गए। 
बरसों बाद सामना हो ही गया मसर्रत-ए-महफ़िल में
सलमाती ज़बान लिए इस बार भी यूं ही खामोश रह गए। 

अरसों पहले जिसकी जिक्र में फिक्र हुआ करती थी, 
उम्र की रेल पर चढ़कर सफर की गीत गाया करती थी, 
खो जाने के ख़्याल से जिसकी शामें लम्बी हुआ करती थी, 
आज वही परदानशीं होकर बेफिक्री का आलमी गीत सुना रही थी। 

उस रोज वक्त की दरख़्त तले हर हौसला यूं ही कमजोर था,
लेकिन सियाह समंदर पर रेंगती लहरों की धार पुरजोर था। 
खो रही हसरतें हृदय की, फिर भी जीवन प्रवाह का अकेला शोर था,
जिस्म पर कस्बाई लिबास लिए,उजालों में भी घटाएं घनघोर था।। 

संघर्ष उस मुक्त वाले मार्ग का है, जहां का दरवाजा हमेशा से खुला था,
शंख फूंकता अस्त सहस्त्र नंगे बदन, जिस पर चला वो आखिरी मार्ग था। 
विकल मिट्टी का मानव जो रो रहा, सदियों पुरानी अकेली रीत निभा रहा,  
राख बनकर धुएं में जो खो गया, वो इस मिट्टी का ही इकलौता रिवाज था।

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता
कहानीबाज रजनीश बाबा मेहता 

Wednesday, September 4, 2019

।।कोई ख़्वाब सा, तो कोई रूह सा है।।

Writer & Director Rajnish BaBa Mehta 
कोई ख़्वाब सा, तो कोई रूह सा है  
आज इस भोर में क्यों कोई मग़रूर सा है ।।
क्या कहूं लफ्ज़ ख़ुद में लाल है
तेरा वो छोटा वाला इश्क़ यूं ही बेमिसाल है।। 
लौट आना कभी तंग गलियों में
जहां हर किसी को सिर्फ तेरा ही ख़्‍याल है ।।
बरसों बीती ख़ुश्क रातों में,
जमाने बाद जली रोशनी बंद दरवाजों तले, फिर भी मन में सवाल है।।
ख़्वाहिशें राख कर दी अलाव में
नंगे पांव नापता रहा राहों को,फिर भी ना जाने क्यूं तुझसे ही लगाव है।।
सारी उमर गुजर गई इम्तिहान में
क्यों तेरी अक्साई ज़िद की ईश्क कभी ना मिली मुझे दान में।। 
देखता हूं तेरी अक्स को ख़तों में
रंक था लेकिन राजा बनकर कभी झांक ना पाया खुद की गिरेबान में।।
तेरी याद में रातें रोती है दिन में
उसी अंधेरी गलियों से गुजर रहा हूं,क्या अब भी तू बसती है इसी आसमान में।।
लो तेरी पाज़ेब को रख दिया दरख़्त में
अब तो लौट आओ काजलों से सने आंखे लिए, मेरे इस अधकच्चे मकान में।।
गुज़ारिश गुनाह है ईश्क--फ़रमान में,
सालती रही तेरी सांसे, सो गई हर ज़ख्में, अब भी ना जाने कौन है तेरे ध्यान में।।
मर्सिया मर्म है सिर्फ़ मयस्सर मौत में,
ईश्क की कगार पर खड़ा, खुद ही हूं ख़ुदा, सारी जिंदगी गुजर गई इसी गुमान में।।

उन धुंधले अफ़सानों की बात पर अब कोई रोया ना करेगा
मौत के पार उमर की लिहाज पर अब कोई सोया ना करेगा ।।
फैसला फ़ासलों की फ़िराक पर अब कोई फिक्र ना करेगा
बात जज़्बात की ज़ेहन में होगी तो तेरा कोई ज़िक्र ना करेगा।।

कातिब & कहानीबाज 

रजनीश बाबा मेहता