Tuesday, September 9, 2008

फर्क नहीं पड़ता





फर्क नहीं पड़ता



वक्त के राहों पर चलता जा रहा हूं ,
हवा के परों पर उड़ता जा रहा हूं ,
समन्दर की लहरों को छूना चाहता हूं,
ओस की बुंदों को पीने की ताक में रहता हूं ,
रेल की पटरियों पर दौड़ने की चाहत में हूं,
क्या ये हसरतें पूरी होगी हमारी ?
कौन देगा इसकी इजाजत हमें ?
इनसानों के चाहतों की उड़ान की कोई सीमा नहीं ..
एक खुशी मिलती नहीं, कि दूसरे की चाहत में लग जाते हैं,
एक मैं हूं, जो एक ही रास्ते की तलाश में हूं,
एक ही बूंद पीने की प्यास में हूं,
एक ही मंजिल पाने की आस में हूं........


-----रजनीश कुमार

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