Sunday, June 26, 2011

यादों का बसेरा






तू ही तू









याद है तू



ख्वाब है तू



राहों की ताकीद है तू



मेरी परछाई



क्यों चले तेरे संग-संग



हर बार साए के साथ है तू ।






ज़िंदगी लम्हों में गुजरती जा रही है



फिर भी इनकार है तू



मानो हर लम्हों में हर वक्त साथ है तू ।






वों आंचल वो बाहें



तेरी छुअन मानो एक नया एहसास है तू



नजरों के सामने होकर



क्यों ओझल सी रहती है तू ।






अब तो बता क्यों खफ़ा है तू



मेरी आगोश में आकर



क्यों सिमटती जा रही है तू।






रजनीश कुमार



8 अप्रैल 2011

मेरी तलाश

अजनबी की तलाश में चलता रहा




एक अजनबी की तलाश में चलता रहा


खामोश गलियों में तेरा इंतजार करता रहा



जहां टूटे हैं सपने...


वहां हाथों की लकीरों को देखे हैं अपने


कदमों तले रास्तों के फासलों का क्या पता


रकीबों के शहरों में अनजान बनकर चलता रहा



चांद की चांदनी तले रात रात भर


ख्वाबों की सूनी सड़कें नापता रहा


अब तो मंजिल का पता नहीं



फिर भी...


तेरी आगोश में सिमटने की ख्वाहिश से जीता रहा


ये मेरी भूल थी या तेरी आंखो की सरगोशियां


जो तेरे आंसूओं से भीगी काजल को पीता रहा



अब तो इंतजार की भी इंतहा हो गई


फिर भी


तेरी नशीली पलकों का इंतजार


बंद गलियों में किए जा रहा हूं।







ऱजनीश कुमार

Sunday, June 12, 2011

जिस्म की आह...रोको ना तुम ।






जिस्म की आह


जिस्म आगोश में सिमट रहा
हल्की सी प्यास ये बदन की
उठ रही अंगड़ाईयों में
खो जाने दो उन लम्हों में ज़रा ।
अपने ललक की भूख को
हाथों से रोको न तुम
खोजता तू खुद को अपने भीतर
ना जाने कहां गुम हो गया ।
मिलन की आस में लंबी है ना दूरी
लेकिन प्यास अभी भी तेरी अधूरी ।
हर वक्त नहीं, आज नहीं, कल भी करेंगे तेरा इंतजार
बंद आंखों से तूम्हें टूटकर करेंगे प्यार ।
लबों की सूर्ख अदाओं को
लबों से छूने दो जरा ।
जिस्म की आह को
जिस्मों में समाने दो ज़रा ।



----रजनीश कुमार

Thursday, June 2, 2011

हो रास्ते लंबे भरे


हो रास्ते लंबे भरे




हो रास्ते लंबे भरे

पांवो के आहट तले

मिट्टी की खुशबू में सने

धूल की आंधियों से भरे

तू राहगीर हो या रणवीर हो

महान पथ पे तू चल रहा

सोच अपनी दरकिनार कर

मंजिल पानी है तूझे ।



रजनीश बाबा मेहता