Thursday, June 18, 2009

मेरी यादें, मेरा बसेरा

तू नहीं तो कुछ भी नहीं.....

गुमनाम रास्तों पर तू चल
तू मुझे बता तू समझ
कि जख्म को तू नकार दे
अंधेरे रास्तों पर तू चला चल
आंधियों को तू पुकार दे
बहती कश्तियों की मझधार में
उड़ती धूल में तू खुद को समेट ले।
जून की दोपहरी में छांव तलाश रहा है तू
भीड़ भरी बाजारों में नंगे पांव चला जा रहा है तू।
ये बता कि, क्या हुई है खता, क्यों है तू खफा।
जुल्म की आगोश में क्यों सिमट रहा है तू
आने वाली आंधियों को क्यों नकार रहा है तू
अपने अतीत को, क्यों खुद याद कर रहा है तू
टूटे आईनों के सामने क्यों आंसू बहा रहा है तू।
रोक ले तू अपनी कल्पनाओं को
आने वाली जिंदगी के बारें में तू सोच
उस भीड़ में उजाले की तरह तुम दिखना
खामोशी बनकर तुम यूं ही मेरी गुमनाम यादों में बसना।


रजनीश कुमार

Thursday, June 11, 2009

।।तू ही बता ! ।।





सपनों कि मंजिल को
तू जा रही है छोड़ के।
तू मुड़ के देख यहां पे
तू किसको जा रही है छोड़ के।
वो वादें वो कसमें
वो इरादें वो बातें
वो तन्हाई भरी रातें
तू याद कर फिर सोच ले
तू जा रही है किसको छोड़ के।
हर गम के बसेरों में तेरा साथ मैने पाया है
आज हू मैं अकेला
जा रही है तू मझे छोड़ के।
यादों की दीवारों पे लिखा है नाम तेरा
वो झांकती झरोखों से तेरी आंखे
किसे भूलूं तू ही बता
किधर को जाऊं तू ही बता।

कातिब & कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता