मां का चेहरा
हर कोई बचपन की कहानी कहता है
मै भी एक ऐसी ही कहानी सुनाता हूं
शाम का ढ़लता हुआ मंजर देखता था
मां के सर पर दुपट्टा, हाथ में दीया
सामने अस्त होते सूरज की ओर, मां का चेहरा
बंद आंखे ,हाथ में दीपक, भक्ति भाव से भरा चेहरा
मासूम भरी मेरी आंखो में होता एक अनसुलझा सवाल
कभी देखता मां का चेहराकभी देखता बुझता दिया ,तो कभी अस्त होता सूरज
सवालों में हर पल उलझता था
सोचता था क्या ये गांव है पूरी दुनिया
हर सवाल का जबाब खुद ही देता
शाम गुजरती घिर के आता घनघोर अंधेरा
रसोई में होती मां और चौबारे पर पढ़ते पापा
लालटेन की धीमी रोशनी भी करती मुझे बैचेन
जब भी दिखती मुझे टिमटिमाती रोशनी
फिर घिर जाता मैं सवालों से
सोचता था न रात होती न होती रोशनी
होता तो सिर्फ दिन का उजाला
रोज हजारों सवालों से जूझता था मैं
मां से डॉट खाने के बाद भी पूछता था मैं
सोने के लिए बिस्तर भी था एक सवाल मेरे लिए
नींद आती खो जाता मै सपनो की दुनिया में
सुबह होती टकराती सूरज की किरणें ऑखों से
मां की आवाज गूंजती मेरे कानो में
सुबह की टेंशन से घबराता था मैं.
स्कूल जाने पर रोता था मैंकिसी तरह स्कूल पहुंच ही जाता
प्रार्थना के लिए घंटी बजती
फिर एक सवाल मेरे दिमाग में कौंधता
कब मिलेगा छुटकारा इन बंदिशो से
इन्हीं सवालो से घिरकर मैने अपनी जवानी में रखा कदम
मां हुई, बूढ़ी पापा ने भी पढ़ना छोड़ा
वक्त गुज़रता गया मंज़र बदलता गया
मां ने अब चुप रहना सीख लिया
पापा ने चौबारे पर जाना छोड़ दिया
एक बार फिर मैं सवालों से घिरता चला गया
सोचता था मां के आवाजों की खनक कब सुनाई देगी
पापा के डांट में वो गुस्सा कब होगा
वक्त गुजरता गया बीबी का साथ मिला
फिर भी मैं मां के सिराहने पर सर रख कर सोता था
अपने आंसू को पीकर भी मै कुछ नहीं कह पाता
कि मां, मै सपने में अब भी तुम्हें ही देखता हूं
याद आती है वो बचपन की बातें
याद आती है वो मां का दुपट्टा
जिससे मां मेरा आंसू पोछा करती थी
सोचता हूं काश लौट के आते वो लम्हें
लौट के आता वो चंदा, वो सूरज
जिसे मै ख्वाबों में देखता था
बचपन तो सवालों के बीच गुजरा
लेकिन अब मैं सुकून से रहना चाहता हूं
अब न तो सवाल है न ही जवाब
पर अब भी मै देना चाहता हूं
अपनी जिंदगी को नया आयाम
मेरे शब्द समाप्त होने को आए
फिर भी एक सवाल गूंज रहा है मेरे जेहन में
क्या लौट कर आएगा वो दिन
जिसे मैने गुजारा था मां के साथ.......
-----रजनीश
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