Saturday, September 20, 2008

क्यों आते हो तुम



क्यों आते हो तुम

बनते बिगड़ते रहते रिश्ते मेरी कविताओं में,
कभी पतझड़, कभी वसंत दिखता है मेरी कविताओं में,

नाराज़ परेशान जब भी होते तुम जिंदगी में,

राहत कि एक किरण ढूंढ़ते हो मेरी कविताओं में,

ज़िंदगी में चले हो तुम रकीबों के काफिलों में,

जब भी जरूरत महसूस कि दोस्तों की चले आए मेरी कविताओं में।

हर मोड़ पर एक शख्स मिला एक सवाल मिला,

उस शख्स का चेहरा तो मिला पर जबाब ना मिला,

नाउम्मीद होकर भी मंजिल की तरफ बढ़ते रहे तुम,

अपनी हिम्मत की कद्र खुद ही करते रहे तुम,

हर पल टूटते हैं सपने, बिखरता है ख्वाब, तुम्हारी ज़िंदगी में,

क्यों चले आते हो तुम, फिर भी मेरी कविताओं में।
------ रजनीश कुमार

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