Wednesday, February 21, 2018

।। बता देता है।।


Writer, Director & Poet Rajnish BaBa Mehta 



।। बता देता है।।

 सत्ता में सुख सामर्थ की नींव हिला देता है। 
सच्चा इश्क इंसानों के जज्बातों की नींव हिला देता है।
छोटे दिलासे, रहनुमाओं को राह पल भर में दिखा देता है।
मिला था हिमालय की तराई में उस सारंगी वाले जोगी से 
जो पलभर में बंद कर आंखें, कंकड़ में शंकर दिखा देता है।।

अफसोस के इस अफसानों में, हर कोई स्याही दिखा देता है। 
रात के रास्तों पर मिलो, तो खुद के गमों का मंजर बता देता है। 
नासाफ़ सा दिल लिए चलकर भी वो, ज़ियारत की दहलीज मांगता है 
गैरत की महफिल में गम्माज़ बनकर फिरता रहता है तख्त की फिराक में 
जब पकड़ा जाता है रंगे हाथों , तो वो घुटनों के बल मौत की दुआ मांग लेता है।।

तरान--ज़िंदगी राख बनकर सांसों मे पेवस्त हुई बेवजह बता कर , 
नंगे कदमों की आहटों को अनसुना किया शोर को वजह बता कर ,
फितरत थी उसकी बातों में, जो ज़मीर बेचती थी फ़लक बता कर ,
लो चला है आखिरी रास्तों में राम लिए, जो आखिरी शाम का पता बता देता है 
अबस झूठ ना कहना आखिरी लम्हों में, वरना कब्र भी अंधेरों का पता बता देता है  
कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 
नासाफ़= गन्दा, अशुद्ध, अपवित्र।। क़ायदा= रीति, नियम,।।गम्माज़ -चुगलीबाज़।।ज़मीर= मन, हृदय।।फ़लक= आकाश, स्वर्ग।।

Thursday, February 1, 2018

।।मगरूर मोहब्बत।।

Poet, Writer, Director Rajnish BaBa Mehta


सब कुछ कह दिया, दिल--अंजाम से पहले-पहले
मगरूर थे मोहब्बत में हम, नाकाम से पहले-पहले।।
सर्द रातों में चादर का कोना लपेटे लेटे रहे 
धीरे धीरे धड़कने बंद होने लगी, सुबह की शाम से पहले-पहले।।
अब जीने नहीं देती तेरी रूसवाई 
मेरी ख्वाहिश को जगा दे, मेरे मरने से पहले-पहले।।

फिक्र ही फिक्र तो किया था, खुद के जिक्र में इक रोज 
गेसू तले सोती सिसकती रही, पामाल सी थी वो उस रोज ।।
बहते रक्त की रंजिश ना थी, अब बस खामोशियां है हर रोज ,
वादा है ये तूझसे, अल्फाजों में अब ना उलझाउंगा किसी रोज ।।
आखिरी ज़नाजे की ज़ियारत--जिक्र जैसी महफिल तो होगी
लेकिन आंसूओं में डूबी बारात ना होगी, बस तन्हा हमरात होगी हर रोज।।

इश्क अश्कों में छुपाकर, ज़फा-ए-जीत से मिली पहले-पहले
ले जाउंगा तेरी शहर से वो यादें, जो मिली मुझे उम्र से पहले-पहले 
छोड़ ये आखिरी ज़ेहन, खो जा मेरी आगोश में सिमटने से पहले -पहले 
दस्तक बेधड़क होने लगी है अब, सीधी छत के छोटे दरवाजों पर,
लो,
अबस होने लगी बंद ज़ुबां,बंद होने लगी आंखें, तेरी मौत से पहले -पहले ।
आना कभी मेरी कब्र के सिराहने तले, इश्कज़दा होना मगर रोने से पहले-पहले।।

कातिब
रजनीश बाबा मेहता 

शब्दार्थ
।।गेसू= लटाएं, केशों के छल्ले।।पामाल= पैरों के नीचे कुचला हुआ।।जफ़ा= अन्याय।।ज़ियारत= तीर्थयात्रा।।