Wednesday, July 31, 2019

।।किस्सों के बीज बो रहा हूं, बड़ा होकर किसान बनूंगा।।

WRITER & DIRECTOR RAJNISH BABA MEHTA 

बरसों से हर रोज किस्से बो रहा हूं 
फिर भी लोग बड़ी अजीब बात पूछते हैं ।
सवाल ये कि बड़े होकर क्या बनोगे ?
हर बार की तरह इस बार भी वही जवाब दे रहा हूं , 
बड़ा होकर एक कामयाब किसान बनूंगा 
बीतते वक्त के साथ खुद की आजमाईश कर 
औऱ भी बेहतर बीज वाले किस्से बोउंगा  

किस्सों की नस्ल कभी बिहार से तो कभी पंजाब से लाउंगा 
कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर गांव की गलियों में जाउंगा 
जरूरत पड़ी तो फिर सरहदें पार भी किस्सों की बीज बोउंगा

फिर भी किस्सों की फसल अगर एकबारगी वक्त के पैमाने तले कम पड़ी 
तो फिर भगत-गांधी -आजाद-बोस को उसकी चिता से जगाउंगा
फ़ैज़-फ़िराक-फ़राज-फाजली को उसके कब्र के सिराहनों से आवाज लगाउंगा
गौहर-जेद्दन-ज़ोहरा की घुंघरूंओ तले हजरत महल के साथ पूरी रात गुजारूंगा। 
औऱ जब फसल लग जाएगी तो फिर उसकी उपज सिनेमा की दमाही हर रोज करूंगा। 

कातिबा & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 




WRITER & DIRECTOR RAJNISH BABA MEHTA

Sunday, July 28, 2019

।।यथार्थ के पटल पर वो नंगा साधु ।।

Writer & Director Rajnish BaBa Mehta 

शिखर से बूटियां बटोरता हिमालय की तराई में सोता, आज वो नंगा साधु शिथिल था
मानव श्रृंगार से बेखबर यथार्थ के पटल पर बंद आंखें किए, आज वो थोड़ा जटिल था।। 

एकांत की भीड़ से निकलकर , शोर में सन्नाटे लिए छोड़ अपनी तप वो, क्यूं बेसुध पड़ा 
लालिमा वाली भोर तले, सारी आसक्तियों को छोड़ पांवो तले, वो जीवन पर क्यूं अड़ा।।

किशोर भरी उम्र लिए सारे भोग से भागकर ,हसीन लम्हों को नापकर जो भेष जोग का पहन लिए
सामने वाली परवाह ना थी,उम्मीदों वाली गवाह ना थी, बस तपते तलवे लिए,जो नंगे पांव चल दिए ।।

सन्यास के सफर पर त्याग भरे वैराग्य की साधना में ,अब हर सफर सोच की, एकांत में होगी 
मन के भंवर के पार खड़ा, हर सौभाग्य की भावना में, अब तृष्णा वस्तु की, अंत में भी ना होगी।

मोह की माया से परे ,जन्मजननी को छोड़ खड़े, अब वैराग्य के सफऱ पर एक नया जीवन-सुर बनाना है 
जन्म -मृत्यु का चक्र छोड़ ,हठ योगी बन सुर सारंगी लिए ,अब वो गेरूआ वाला अंगवस्त्र ही अपनाना है ।।

गुजर गई सारी बातें, बीत गई बरसों रातें , सो गई कईयों की सांसे, लौट रहा हूं कुछ अंत का अनंत लिए
माघ वाली महादिशा की ओर, बदल रहा है उर्जा का प्रवाह हर ओर, चल रहा हूं सोच में अब भी वही संत लिए।।

फिक्र का जिक्र है थक सा गया सफर सोच का, थक सी गई है वो हिमालय वाली कांपती बूढ़ी टांगे 
लौट रहा बेफिक्र ख्याल मन का, वैराग्य हुआ पराया, मोह का बचा ना माया, फिर भी ये मन क्यूं तन ही मांगे ।।

सवालों की उलझनों में सिमटा हूं, बंद आंखें लिए अब ना जाने क्यूं सामाजिक सोच में लिपटा हूं 
तोड़ पाउंगा उन जंजीरों को उंगलियों से, हर जवाब की ताक में अब तो अंधेरों से ही सिमटा हूं।। 

 दुनिया देख रही अंत के अनंत को ,फिर भी
शिखर से बूटियां बटोरता हिमालय की तराई में सोता, आज वो नंगा साधु शिथिल था
मानव श्रृंगार से बेखबर यथार्थ के पटल पर बंद आंखें किए, आज वो थोड़ा जटिल था।।

कातिब & कहानीबाज

रजनीश बाबा मेहता 

Thursday, July 11, 2019

।।सारी दुनिया उसकी लिखी हुई एक आखिरी साजिश है।।

Writer & Director Rajnish BaBa Mehta 


सारी दुनिया उसकी लिखी हुई एक आखिरी साजिश है 
रेंगती राहों पर ये जिस्म मानो उसकी बरसों की ख्व़ाहिश है ।।
अब तो टूटते हैं बदन लगता है मौत से पहले की आजमाईश है,
ख्व़ाबों के खाक तले, माथे पर चांद लिए, ये खुदा की कैसी आराईश है।।

मन सोचता संयोग से वियोग में तराफ कर हर हर्फ़ मिट जाएगी 
खुले दरवाजों की सांकल तले बैठा है, जैसे रूह पल में सिमट जाएगी।।
सारी दीवारें सियाह हो गई,अब वो लाल लफ्ज तक का रास्ता यूं ही कट जाएगी 
गुजर गया ज़माना गले लगाए हुए,अब तो उसकी साजिशों के तले अंजाम भी भटक जाएगी।।

मन सोचता है, कि फ़ैज अपनी कब्र पर कौन सी मर्सिंया किसे पैगाम कर रहा होगा 
भरी जुगनुओँ की भीड़ में फ़िराक़ सुपुर्द-ए-ख़ाक होने पर भी किसकी फिराक में होगा।।
वो इलाहाबाद का अकबर ना जाने किससे कल्त की बात कर आह भी ना भर रहा होगा 
साजिशों की साज तले वो बादल ना जाने कल किसकी गुनाह पर आंसू बहा रहा होगा ।।

कब्र की कैद में जकड़े हजारों शायर, हुजूर की लिहाज में ना जाने किसका लिफाफा लिख रहा होगा 
धुआं बनकर उड़ते दिनकर ना जाने कुटुंब कृष्ण से महाभारत का कौन सा गूढ़ रहस्य समझ रहा होगा ।।
संगम में सोए सूर्यकांत निराला,इलाहाबाद के पथ पर टूटते पत्थर की आवाज में मर्म ही ढ़ूंढ़ रहा होगा 
इमरोज की पीठ पर सोई अमृता को, साहिर ना जाने कौन सी सूनी दुनिया में अकेले तलाश रहा होगा ।।

अरसों से बरसों तक बेबसी का ये अजीब सा आलम है , 
खुदा से रिश्ता-ए-हस्ती की फिराक में मौत ही मयस्सर मातम है ।।
खुद को आजमाउंगा मैं भी उसी रोज,जब इल्म होगा कि यही आखिरी ख्व़ाहिश है 
देखूंगा नज़र से, कि कैसे सारी दुनिया उसकी लिखी हुई एक आखिरी साजिश है ।।

कातिब & कहानीबाज 

रजनीश बाबा मेहता