Monday, January 23, 2017

मैं अकबर तेरे वास्ते ।

Rajnish baba mehta poet
रह लूंगा रहगुजर तेरे वास्ते 
ये सोच लेना कभी तुम मेरे वास्ते ।
सोच की आहटों तले चल-चल 
बंद कर सांसों की गरमाहट के वास्ते ।
बंद मुट्ठियों में शिकन की शिकायत ना करना 
दर्द की गिरह को पकड़ ले, सूजी उंगलियों के वास्ते। 
पहुंचना कभी मेरे ख्वाब की आतिश तले 
आखिर में पकड़ा है कलम क़ातिब, तेरे वास्ते ।
ढ़ूंढ लेना अपना मकाम अपने बख़्त को परख के 
जब भी सर उठाएगा तू, अकबर होउंगा मैं तेरे वास्ते। 
मैं अज़ल ख्वाब नहीं, हकीकत हूं सबके वास्ते। 
मैं अज़ल ख्वाब नहीं, हकीकत हूं सबके वास्ते। 

आतिश = आग, बख्त़= सौभाग्य, भाग्य,अज़ल= अनन्तकाल,


                कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

Thursday, January 12, 2017

लाई है …….!


रजनीश बाबा मेहता की कविता लाई है ....!
लाई है …….!

रात रहनुमा चांदनी रात सी लाई है 
दरकते दरारों संग दीवार लाई है
महकती आंगन के झरोखों से चौपाल लाई है
पढ़कर भूल आया मैं लेकिन किताबों की सौगात लाई है ।।
शख्स था वो चेहरों में सच की पूरी बात लाई है
जानें दो आसूंओं को बूंदों की सैलाब लाई है 
छोड़ रहा हूं तेरा आंगन, कदमों की जो बात लाई है
जाने दे मुझे चौखट तले, सख्त रास्ते जो साथ लाई है।।
छोड़ा था एक पल रोशनी , जिसने अंधेरों को साथ लाई है 
अब बस बानगी बची है दीवानगी की 

जो पूरे पन्नों के बीच शब्दों सी ज़ज्बात लाई है । 



 कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

Tuesday, January 3, 2017

क्रांति....2017

Rajnish baba mehta
क्रांति....
सर्द रातों की तरह, सुबह खुशनुमा निकला हूं,
बीते लम्हों की तरह, शब्दों सा नया निकला हूं ।।
छोड़ दी पुरानी सोच की तरह यादों से निकला हूं,
बंद कर दी अब मैंने, ज़ज्बातों के दरवाजों से निकला हूं ।।
काट दिए पुराने पन्नों पर बुरे लम्हें, नई सोच के साथ निकला हूं,
कोरे कागज पर नई कलम से, खुद की नई दास्तान लिखने निकला हूं।।
शीशे की शक्ल को साफ कर, नई तस्वीर बनाने निकला हूं,
मिलना मेरे नए रास्तों में, क्योंकि सिनेमा से खुद की तकदीर बनाने निकला हूं।।

कातिब 
रजनीश बाबा मेहता