Sunday, September 28, 2008

ढूंढता हूं मैं......खोया हुआ एक चेहरा


ढूंढता हूं मैं......खोया हुआ एक चेहरा
अगर तू मिलती मुझे ,
तो मिलता मुझे मुकम्मल ज़हां।
जब से छोड़ गई तू मुझको,
उड़ गया मेरा आशियाना यहां।
तेरा दामन जब से छूटा,
भूल गया मुझे जाना है कहां ।
अब किसी से पूछता हूं तेरा पता,
तो लोग कहते है जाओ वहां।
मेरे दर्द को तू समझ न सकी,
फिर भी जानना चाहता हूं, लोगो से तेरे बारे में बयां ।
जब जाता हूं मयखाने ,तो लोग स्वागत करते है,
ये कहकर, यही है आशिकों का कारवां।
जब मैं पीता हूं ,तो भूल जाता हूं तेरी बेवफाई की कहानी,
क्या करूं नरम हाथों से पिलाती है वो बेजुबां निशानी ।
नशे में ढूंढता हूं मैं,
तेरे चेहरे की मासूमियत को हर चेहरे में ।
मगर तू दिखती है हमेशा,
उस बेजुबां निशानी के चेहरे में।
क्या यही सच है हर कोई ढूंढता है

दूसरा चेहरा एक चेहरा खोने के बाद,
मगर मैं ढूंढता हूं वही चेहरा,
एक चेहरा खोने के बाद।

----रजनीश कुमार

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