Saturday, July 25, 2020

।।सुबह-सुबह वाली शाम।।



एक यादें ही तो है, जो हमेशा खूबसूरत होती है
वो पुरानी राहें ही तो है, जो दरिया--सुक़ून होती है।।

गट्ठरों की ढ़ेर जैसी यादों के होते भी 
जब दिल में वीरानी होती है, तो हैरानी होती है।।

यादों के दरम्यां जब टूटे लफ़्ज औऱ बिखरी बातें हो , 
तो उसकी यादें सिर्फ बेज़ुबां निशानी होती है।

झरोखों के करीब गलियों में जब बेनाम साए हों, 
तो वहां उनकी हसरतों की ग़ुमनाम ख़्वाहिश होती है।।

लौट आने की ज़िद में जश्न--फ़िराक़ लिए बैठे हो, 
जैसे सन्नाटों की सड़कों पर, रूह़ की सुकून से बात होती है। 

हर्फ़-दर-हर्फ़ की आज़माईश में अपनी अक़्स तले लेटे हो, 
जैसे कब्र के सिराहने तले, अकेले-अकेले ही मुलाकात होती है।।

लौट जाने की फ़िक्र में बादलों के किनारे धीमी सांसों के सहारे हो 
अब तो ख़्याली ख्व़ाब के इंतज़ार में सागर भी सिसक रही होती है।।

मुकम्मल मुकद्दर कभी मिला नहीं, फिर में दामन में रात समेटे हो,
अब तो ना जाने कैसे एक पल में सुबह-सुबह ही शाम होती है।।

एक यादें ही तो है जो हमेशा खूबसूरत होती हैं
वो पुरानी राहें ही तो है जो दरिया--सुकून होती है।।


कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता