Thursday, November 28, 2019

।।कारीगर हूं साहब।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta








Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta




कारीगरों की खामोश बात किसी ने सुनी है अबतक 
हुनर को तराशने का हौसला किसी ने देखा है अबतक !!
हर रोज घिसती किस्मत पर सवार होकर दौड़ा है कोई 
सिलते लफ़्जों की तलहटी तले अब हर रोज चीखता है कोई 
कहता हैकारीगर हूं साहबमेरी हुनर की आवाज सुनता है कहां कोई।।
जो कभी जान ना पाओ तो तोल लेना तराजू के पलड़ों पर 
हंस कर अपना दर्द छुपाना जानता हूं बस इसी कारीगरी पर।।
नसीब ऐसा कि कुछ को कलाकार, तो कुछ को बेकार नजर आता हूं
उंगलियों से गढ़ी तकदीर मगर अब जमाने के लिए बस बाज़ार ही नजर आता हूं। 
किसी की आस पर गुजार रहा हूं जिंदगी, अब तो हर शख़्स को बेईमान नज़र आता हूं,   
उम्मीदों की महफिल में हुनर का तमाशा रोज दिखाकर, अक्सर यूहीं खाली हाथ घर लौट आता हूं।।

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 

नार्थ इस्ट में हजारों कारीगर आज कम पैसों की वजह से अपनी हुनर से समझौता करने पर मजबूर हैं। लकड़ी से बने सामान हमारी घर की शोभा होती है, लेकिन वही सामान नार्थ इस्ट के गांवों में उसे बनाने वालों के यहां कौड़ियों के भाव मिलता है। आसान नहीं होता अपनी हुनर की सही कीमत को हासिल करना। मुश्किल है, बहुत ही मुश्किल, इतना मुश्किल कि ये समस्या कभी हल ना होगी। बात वहां की हो या यहां ही हालात एक जैसे हैं। 

Monday, November 25, 2019

।।हिन्दी मेरी भाषा।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta

आओ कुछ बातें और मुलाकातें हिंदी में हो जाए,
कुछ टेढ़ी लकीरों का आकार हिंदी में हो जाए।
बरसों से सिमटी सपनों का साकार हिंदी में हो जाए,
हर ख़्वाबों भरी ख्वाहिशों का संसार अब हिंदी में बसा लिया जाए।  

हिंदी हमारी सभ्यता संस्कृति की पहचान जो है। 
हिंदी हमारी गंगा जमुनी तहज़ीब की आन जो है। 
हिंदी , हर हिंदुस्तानी का सम्मान है।
जिसके बिना हिंद थम जाए 
ऐसी जीवनरेखा है हिंदी। 
हर हिंदुस्तानी का अभिमान है हिंदी 
हिन्दी, मादर--हिंद की शान है , हिंदी।  
इस धरा पर बहती संगम की हर धारा है हिंदी
जन-भेद का मतभेद मिटाती ऐसी हमजोली है हिंदी। 
सात सुरों का साज सजाती, हर रंगों का मेल कराती है हिंदी
चारों दिशाओं का गठजोड़ , हर धर्मों का एक पाठ पढ़ाती है हिंदी।।
जीवन की आधार है हिंदी , सदियों पुरानी व्यवहार है हिंदी
ली है शपथ, खाई है कसम जिसकी, वो मातृभाषा है हिंदी।। 
हिन्दी मेरी भाषा , हिन्दी मेरी आशा ,
हिन्दी का उत्थान करना, हर हिंदुस्तानी की जिज्ञासा।




हिंदुस्तान में समय-समय पर हिंदी को लेकर विरोध जब जब होता है, तब-तब मैं अपनी मातृभाषा में सिकुड़ना का एहसास महसूस करता हूं। इसकी वजह सिर्फ एक ही है, वो है अपने ही देश के अंदर हिंदी का विरोध। लेकिन आजादी के बाद हिंदी विरोध की जगह धीरे-धीरे सिकुड़ती जा रही है। 
हिंदी की जबरस्त लोकप्रियता का एहसास मुझे उस वक्त हुआ, जब मैं नार्थ इस्ट की यात्रा के दौरान वहां के लोगों को इस भाषा को लेकर उत्साहित देखा। 7 राज्यों वाली नार्थ इस्ट अब 8 राज्यों मे तब्दील हो गई, लेकिन यहां हिंदी पहले के मुकाबले काफी मजबूत अंदाज में दिखाई देती है। अरूणाचल प्रदेश से लेकर मेघालय, सिक्किम से लेकर मिज़ोरम तक हर कोई अपनी लोकल भाषा का प्रयोग तो हर रोज करते हैं, लेकिन जैसे ही उनकी ज़ुबान पर हिंदी आती है , तो हिंदी के साथ एक मुस्कान भी आ जाती है। औऱ ऐसी बात नहीं है कि नार्थ इस्ट में हिंदी आज औऱ कल से बोली जाने लगी है, बल्कि आजादी के बाद सन् 1961 के आस-पास हिंदी ने अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया था। नार्थ इस्ट का अरूणाचल प्रदेश आठ राज्यों में सबसे बड़ा राज्य है। वहां करीब 500 से ज्यादा जनजातियां हैं, जिसकी वजह से वहां बोलियों की संख्या भी ज्यादा है, लेकिन आश्चर्य की बात यै हे कि अरूणाचल में हर जनजाति के लोग हिंदी बोलने को लेकर काफी सहज नजर आते हैं। इतना ही नहीं हिंदी के विकास को लेकर नार्थ-इस्ट के हर राज्य में एक राष्ट्रभाषा प्रचार समिति बनाई गई है। साथ ही कहीं-कहीं हिंदी साहित्य अकादमी भी है, जिनके जिम्मे हिंदी को बढ़ावा देने का है। यहां के कुछ लोगों से जब हिंदी में बात करने का मौका मिला तो फिर कुछ लोगों ने तो यहां तक जानकारी दे डाली कि, 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है  औऱ 10  जनवरी को विश्व हिंदी दिवस – International Hindi Day मनाते हैं। भाई गजब है, औऱ दूसरा गजब तो ये है कि तमिलान्डु में आज भी हिंदी विरोध के स्वर रह-रहकर गूंजने लगते हैं।  1960 के दशक के हिंदी विरोधी आंदोलन जब व्यापक रूप लेने लगा तो, केंद्र ने विवादित प्रावधान को खत्म कर दिया और आश्वासन दिया कि हिंदी किसी पर थोपी नहीं जाएगी, औऱ तब से कुछ ऐसे तबके पैदा हो गए जिनके लिए हिंदी हाशिए पर एक चंद्रबिंदु की तरह है। 
कहानी बहुत है कहने को औऱ लिखने को। लेकिन कभी कभी इशारा समझना ही बेहतर होता है। 

हर कण में है हिन्दी बसी
मेरी मां की इसमें बोली बसी।।
मेरा मान है हिन्दी
मेरी शान है हिन्दी ।।


कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 


Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta





Wednesday, November 20, 2019

।।कभी ना कभी हमारी बात जरूर होगी।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta 


रूह में रहता हूं , हर बात सांसों से कहता हूं ।
फ़िराक़ अश्क की नहीं, आइनों में यू हीं बसता हूं।।
सफर सांझ की हो, तो ही आखिरी बार डरता हूं
सुकून पाने की तमन्ना में, हरपल एक ही लफ़्ज कहता हूं।।
तुम मेरी ख़्वाहिशों को यूं हीं खाक ना बनने देना
जो राख वाली बातें तुम्हें सपनों में साख जैसा सिखाता हूं ।।
ढ़लती शाम वाली पंखों से बिना जुगनुओं वाली रोशनी जो जलाता हूं।
सितारों की ख्वाहिश में, अब अकेली उस चांद की बातें ही बताता हूं,
कि कभी-कभी बादलों से भी अक्स नजर आता है ।
उस धुंधली गुमनाम गलियों से जब भी झांकता हूं
टूटे हुए झरोखों पर हमेशा वही शख़्स नजर आता है ।
फेर लो रोशनी में बुझती चरागों का मुख
जो अब काली रातों में सिर्फ जज़्बात ही नज़र आता है।
अब बस
उम्मीद होगी….
इतंजार होगा…
पुकार होगी….
सफर सांझ की होगी…
हम मिले ना मिलें कभी ना कभी हमारी बात जरूर होगी।




Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta 

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 

Thursday, November 14, 2019

बमहम: बरसों की मेहनत से बनी एक आवाज

Rajnish BaBa Mehta With Unique Instrument BAMHAM

Rajnish BaBa Mehta With Unique Instrument BAMHAM





























खुद से खुद की मुलाकात, अक्सर यूं होती नहीं, 
अपनी हसरतों की तले, कभी खामोश बात होती नहीं।।
उलझे धागों की तरह जिंदगी सुलझाने की तमन्ना तो है 
बिखरे पन्नों पर ख्वाहिशों के, जज़्बात अब समेटी जाती नहीं।।
बेवक्त बेरूखी लिए किसी की धुन पर, अपनी राग छेड़ने की फिराक में हूं
परिंदों की जागती ज़िदगी को देख, अब अपनी उड़ान भरने की इंतजार में हूं।  
लो लिख दिया तुम्हारी बातें, अब तो गुनाहगार होकर भी ठहरने की फिराक में हूं। 
बरसों बीत जाते हैं, कभी कभी एक बात कहने में,
हर बार जमाने गुज़र जाते हैं, कभी-कभी अपनी ख्वाहिश संजोने में।।
उम्र गुजर गई एक सपने को पूरे करने में। 
आज सोचता हूं कई रातों की मेहनत के बाद,
एक साज बनाया, एक श्रृंगार बनाया 

बरसों की मेहनत से, एक आवाज बनाया ।।


नार्थ इस्ट की यात्रा के दौरान नागालैंड के दीमापुर में हमारी मुलाकात मोआ सुबॉंग से हुई। मोआ ने बमहम नाम का एक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट बनाया। जिसके लिए उसे राष्ट्रपति के हाथों नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है। 

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 

Tuesday, November 5, 2019

।। रूह फिर भी ।।

writer & Director Rajnish BaBa Mehta कहानीबाज
writer & Director Rajnish BaBa Mehta कहानीबाज





।। रूह फिर भी ।।

एक रोज नाप लूंगा ज़िदगी 
सफर सांझ होगी फिर भी ।। 
ढूंढ लूंगा ख़्वाहिशें अब 
रास्ते मुड़ती होगी फिर भी ।।
झांक लो तस्वीरों में मेरी 
तिरछी लकीरें होगी फिर भी।।
आना कभी खिड़कियों की सिराहने तले 
घनी अंधेरी रात होगी फिर भी ।। 
ख़्वाबों की तलाश में ख़ातिर खूब हुई 
टूटी है उंगलियां थाम लेना हाथ फिर भी ।। 
पुस्तक लिए बैठा हूं मस्तक की तलाश में 
मिल भी जाऊं गैरों की जमीन पर मुलाकात कर लेना फिर भी ।। 
काली लकीरों ने सूर्ख़ रास्ता दिखा तो दिया 
ना जाने फ़िक्र की तलाश में मन क्यों भटक रहा है फिर भी ।।
उस रोज के आने का डर है जहां मौत मयस्सर है 
बंद होगी जब आंखें ढ़ूंढ़ लेना खुद की रूह को फिर भी।।



कातिब & कहानीबाज 

रजनीश बाबा मेहता 


writer & Director Rajnish BaBa Mehta कहानीबाज

writer & Director Rajnish BaBa Mehta कहानीबाज