Sunday, September 21, 2008
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परिंदों की तरह उड़ना चाहता हूं मैं, उफनती नदियों की तरह बहना चाहता हूं मैं, लेकिन इंसानी जिंदगी में बहुत मुश्किलें है, लेकिन सोच लो तो क्या मुश्किल है, अगर मुश्किल है तो नामुमकिन नहीं । -------------------------- लिखना बगावत है औऱ मैं इस दुनिया का सबसे बड़ा बगावती । ---- क़ातिब रजनीश बाबा मेहता
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