Sunday, September 18, 2016

वेद में लिपटा बाबा

वेद में लिपटा बाबा - रजनीश बाबा मेहता 
लिखना बगावत है


मैं वाह, प्रवाह, वेग, व्यास, वेद में लिपटा हूं,
तू बन बेड़ी , मैं जंजीर बन के लिपटा हूं । 
सुबह की सूरज सी धूप सा सहमा हूं,
चंदा की रोशनी सी रात में सिमटा हूं ।।
जख्म दिया जो तूने पीठ पे 
मरहम की आस में खुद से लिपटा हूं ।।
आज पलकों भर आंसू से रोया हूं 
तू क्या जाने आज ख्वाब को किस कदर खोया हूं ।।

यादें संभाल कर रखूंगा इस दिल में 
मरहूम सा दुबक कर ना सोउंगा मैं बिल में ।।
ख्वाब-ए-इश्क को फना भी मैं ही करूंगा 
खुदा का मैं नेक बंदा फैसला भी मैं ही करूंगा।
जुबान बंद कर जो दर्द पिया वो तर्जुबा हुआ 
ख्वाहिश की मंजिल तक जो मैं पहुंचा वो भी तर्जुबा हुआ ।।
मेरी किस्मत भी नाज करती है मुझपे 
हर नजर को निगाह-ए-हक है मुझपे  ।।
अब पहुंचा हूं जो तारीख पर 
हैरान रह जाओगे मेरा मुकाम देखकर ।।

अच्छा हुआ बिखरे जमाने कब के गुजर गए 
लगी जोर की ठोकर जो हम बच गए ,
बंधे थे खुद की ख्वाहिश-ए-ख्वाबगीर में
बरना कबके हम भी बिखर गए होते ।।
शुक्रिया तेरा है जो तूने खुद ही खुद का सोचा 
वरना आज भी हम हीरा नहीं 
तपती रेत में पत्थर की तरह बिखर गए होते । 

             कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 
आज दिल में कुछ रोष है और व्यक्त करने का माध्यम इससे बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता ।




   

Monday, September 5, 2016

अनकही कहानी रीत सी



एक रीत सी है, एक प्रीत सी है ।  
अनकही कहानी रीत सी _ रजनीश बाबा मेहता 
वो गीत सी है, वो शाम की सुबह सी है।।
अँगड़ाईयों में अश्कों सी है
वो अज़ीम अफ़साना अब्त़र है ।।
शाख़ ए जिस्म में पेवस्त सी है
वो सुर्ख़ ज़ख़्म में नस्तर सी है ।।
रेंग रेंग चलती पर्वतों पर पत्थर सी है ,
टूटे आहटों के सायों का चलना बदस्तर है ।।
फ़िरदौस की फ़ांका में बाबा, फ़रिश्तों से मिल आया
किताब के कोरे पन्नों पर, तेरे लिए पूरा नज़्म लिख आय़ा ।
अब तक हर राह रूमानी थी, हर ख़्वाब बेमानी थी,
अब तो तेरा रिश्ता , बिस्तर के कोनों के जैसी ज़िस्मानी थी।।
वो रात की पूरी बारिश रूह सी रूहानी थी
खुली आँखों से लगती वो एक अनकही कहानी थी ।।

                                      कातिब 
                              रजनीश बाबा मेहता

अज़ीम- महान, अफ़साना- कहानी अब्त़र - नष्ट, बिखरा हुआ, फ़िरदौस- स्वर्ग, फ़ांका- भूखा,