Wednesday, April 29, 2020

इरफान खान।

Tribute to irrfan khan death poem written by Rajnish BaBa Mehta 

कैसे कहूं, क्या कहूं
तुम लफ्जों में, सिमट ही नहीं पाते। 
उम्र तो बस एक भरोसा था 
तुम्हारे साथ लंबे सफर की
मगर बीच राहों में छोड़ यूं 
अनजान राहों पर गुम क्यों हो गए ?

अभी तो हमने ख्वाबो के परिंदे गिनने ही शुरू किए 
अभी तो हमने तुम्हारी बड़ी-बड़ी आंखों से 
छोटी दुनिया में झांकना ही शुरू किया
तुमने उन बड़ी बड़ी आंखों को बंद क्यों कर लिया। 
उम्मीदों भरे एहसास को डिब्बी में बंद क्यों कर दिया।

मुझे पता है तुम कभी लौट कर ना आओगे 
भरोसा नहीं होता तुम अकेले ही सफर पर निकल जाओगे।
तुम खुद ना सही मगर अपनी रूह का एहसास हर पल कराओगे, 
वादा किया था तुमने , मगर कैसे कहूं  कि तुम अब कभी ना मिलने आओगे।। 

कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

Friday, April 10, 2020

।।मर्ज़ी का मालिक बन।।


आज मेरी ज़ुबान को आवाज़ नहीं
आज मेरे हाथों में मेरे अल्फ़ाज़ नहीं
फ़िक्र के समंदर में डुब कर आया
जिस्म को तेरी आवाज़ की अब ज़रूरत नहीं।

जो खोया वो मेरा कभी था ही नहीं
जो पाउंगा वो तेरा कभी होगा ही नहीं
सोच औऱ सपनों से संसार जो बुनूंगा
सासों की सिलवटों से जो कहानी लिखूंगा
वो नायाब हीरा तो होगा लेकिन तेरे जैसा पत्थर नहीं ।।

उठाके बंसी चाँद तले, छेड़ूंगा तान लेकिन रोउंगा नहीं
बुझा के दीया बिस्तरों के किनारे बैठा हूं, लेकिन सोउंगा नहीं
परख ज़ौहरी सी बना ली मैंनें, फिर भी ठगना फ़ितरत नहीं
हवाओं ने फ़िज़ाओं के साथ रूख़ बदला, लेकिन हारना अपनी आदत नहीं।।

तो फिर चल, उठा सारंगी बन फ़क़ीर साज की परवाह नहीं
बन मालिक अपनी मर्ज़ी का , क्योंकि तेरे सामने ज़माने का ज़िक्र नहीं ।

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 

Thursday, April 9, 2020

।।सफर कुछ जाना पहचाना सा है।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta 

अनजाने रास्तों का है ये सफर, कुछ जाना पहचाना सा लगता है,
मिलने-बिछुड़ने की बात करता है, अपना घर सा ही लगता है।।
ना जाने किस मोड़ पर मुड़ती है हरसतें, हवाओं में कुछ उम्मीद सी लगती है,
पीछे जो छुट गई कई कहानियां, नए रास्तों पर थोड़ी गुमनाम सी लगती है।।

फैसला कई बरसों का था, जो ये रास्ता आज मिला,
सदियों से सोती हुई सड़कें,  हमारी हसरतों को जगा गया।।
खामोश ख्वाहिशें जो निकली है पुराने बंद दरवाजों से, 
मरते हुए मन, गिरते हुए जिस्म को ज़िंदा होना सिखा गया।।

ये हवाओं की सरसराहट, झुरमुटों का शोर, कुछ कह रहा है,
कहां खोए थे तुम, क्यों रोए थे तुम, क्या पाए थे तुम, भीड़ ही तो थे तुम ।। 
वो बेकाबू बेबाक मन, उम्मीदों का बोझ लिए बेचारा तन, कुछ बोल ना सका, 
फिर भी सोच की गहराईयों में खोए, सांसों औऱ धड़कनों के लिए ज़िदा हो तुम।

मिटा दो अब लिखी हुई सारी तकदीरें, तोड़ दो बंदिशों वाली जंजीरें,
गुजरते वक्त तले भूले-बिसरे किस्सों की अब कोई बात नहीं होगी ।।
जो खो गया उसकी फिक्र में जज्बातों की कोई ज़िक्र नहीं होगी, 
सन्नाटाओं का शोर है, फिर भी खुशियों तले हौसलों की  कभी हार नहीं होगी।।

#कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता 
#कहानीबाज Rajnish baba mehta 

कहानीबाज रजनीश बाबा मेहता 


Tuesday, April 7, 2020

।।गांव का रस्ता।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish Baba Mehta


छोटे शहरों की जिंदगी का अजीब सा फ़साना है, 
ढ़लते सूरज की धूप का अपना ही अफ़साना है ।।
लौटते कदमों की आहट लिए, घर पहुंचने की जिद है,
ज़ेहन में एक ही बात की फिक्र है,मां का आंगन जो सूना है।।

गुजर गया दिन फिर भी क्यों लगता है कुछ ना कुछ भूल गए हैं 
अंधियारे में मन क्यों सोच रहा, कुछ ना कुछ काम था जो रह गए हैं। 
खड़ी खाट जो जमीन पर गिराया,मानों उसके टूटे पांव फिर से टूट गए हैं,
रसोई में अम्मा चौबारे पर बाबा, लगता है दोनों फिर से रूठ गए हैं।।

धीमी आंच पर बनते रिश्तों की सारी खुशबू एक साथ आए हैं,
चढ़ती चांदनी तले मानों दुआरे पर बिखरी रोशनी भी पैगाम साथ लाए हैं।। 
सूनी गलियों से अकेले गुजरने वाले, फटी जेब में खुद के साए साथ लाए हैं,
छप्पड़ के एक ही कमरों में सब सोए हैं, मानों मकान नहीं अपने घर आए हैं। 

बरसों-बरसों से था दिलों में जो बसता, सीने में कभी ना था वो सस्ता
शहर की सकरीं गलियों में जिसे भूल ना पाया,था वो अपना गांव का रस्ता।।
सारी हसरतें पूरी कर जब आंख खुली, बस चल पड़ा उठा के अपना बस्ता,
नए सफर की शुरूआत होने लगी, आखिरकार था भी तो वो अपने गांव का रस्ता।।

कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता