Friday, February 24, 2017

।। तू आक़िल नहीं ।।



RAJNISH BABA MEHTA 

राह की सरगोशियों की आवाज़ सुनी मैंनें
मेरी तारीफ़ के लफ़्ज़ तेरी ज़ुबान से सुनी मैंने
तेरे ज़ेहन की ज़ेहनियत को भी ख़ूब सुना मैंने 
सोचता हूं कि तू ऐसा क्यूं सोचता है, जैसे नहीं सोचा मैंने।।
मैं आक़िल , तेरी गिरफ़्त से क्या निकला
तू खुद अर्ज़मन्द बन, मुझे बुरा बताकर ले लिया बदला
भूल गया तू लम्हों ही लम्हों में, बातों ही बातों में सारे फ़ैसलों को
जो बदल दिया था एक रात में तेरी राहों की हर एक मुसीबतों को ।।
ना किसी बात का गिला, ना फ़िक्रमंद होकर रहता हूं
बस तेरे शब्दों के बाण से कभी कभी चिंतित हो जाता हूं ।
इस प्रवीर पथ पर मैं बिना थके, बिना रूके चलता रहूंगा
शब्दों के आग़ोश में, आफ़ताब की रोशनी में शिखर पर बहता रहूंगा।।
आक़िल- बुद्धिमान ।।अर्जमन्द - महान ।। आफ़ताब - सूर्य।।
कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

।।खुदा के साथ मैं खड़ा।।


राहें हुई जुदा
मयस्सर बनके खुदा
खोज लेंगे खुद को कहीं नहीं 
तन्नहाइयों तले खुदा के भीतर वहीं।।
सोचा इश्क़ का पयाम होगा दोगुना
रात कटी बिस्तर पर जैसे चाँद चौगुना ।
खुली होगी आँखें, हुआ होगा भोर का सवेरा
थोड़ी आवाज़ आई कानों में, सो जाओ बचा है अंधेरा।।
सपनों की गश्त पर फिर निकला जो हौले सा हुआ था इशारा
ढूंढने में ख़ूब लगा वक्त, मिली कड़ियां ऐसे, जैसे बना मैं बेचारा !
मुर्ग़े की बांग से डरकर, ख़ूब दौड़ा ख़्वाबों में, क्योंकि वक्त का था जो पहरा
छूट रही थी सांसे , ज़ेहन के जज़्बातों में , क्योंकि दिल का राज जो था गहरा।
आँखें खुली शर्त लगाई मैंनें हवाओं से दोनों हाथ फैलाकर
सन्न सी करती आई हवाएँ, क़ब्र के कोनों से गिरगिराकर
पांव में बन बेड़ियां, मेरी रूह को रोकने की कोशिश की वो भरपूर चाहकर
खुदा के साथ पाया मुझे खड़ा, ख़ाली हाथ लौट गया वो आख़िर हारकर।।
कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

Tuesday, February 14, 2017

।। ज़ुबान उर्दू होनी चाहिए ।।


ज़ुबान उर्दू होनी चाहिए 
और अल्फाज़ में रूहानियत।।
ज़ेहन में ख्वाबगीर सा लंबा सफर 
तो शब्दों में ज़हर सा हो असर।।

तस्वीर तसव्वुर के करीब हो तो मज़ा है
वरना तेरी उम्र एक वक्त के बाद तेरे लिए सजा है।
सोच में सच्ची साज़, औऱ उम्मीदों में अच्छी आवाज़ हो 
तो फिर किसी के लिए फ़क्र होगे, तो किसी के लिए नाज़ हो ।।

ज़िंदगी में नुक्कड़ ना हो, तो फिर  नासमझी का सवाल नहीं 
रिश्तों की समझ ना हो, तो फिर काबिल तेरा जवाब नहीं 
तू सोच की समंदर लिए ,चलना मेरे साथ कभी 
फिर भी रौंदा जाएगा मेरे कदमों तले, बिना आवाज़ किए कभी भी।।

सोच ले , समझ ले, मेरी रूहानियत को अभी भी 
बेवक्त वक्त है तेरे पास, बना ले ज़ुबान उर्दू सी अभी भी।।

कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

।।ख़त तेरे लिए।।

जमाने बाद लिखा खत,  मैंने आज 
पुरानी गलियों के दरवाजे से बाहर निकला आज 
कुछ रिश्ते पीछे छूटे , छूट गया कुछ पुराने दोस्तों का मेला 
जिसके साथ खेला था, मैंने नंगे पांव ज़िंदगी का खेला। 

सब्र के लिए शुक्रिया कहा औऱ आंसू लिए निकल पड़ा 
चंद कदम बाद अहसास हुआ, शरीर ही तो है आत्मा थोड़ी ना निकल पड़ा ।
पहली बार लगा,  मेरे शब्दों की आवाज थी नहीं आज 
काश बिना बोले समझकर, मुझे शुक्रिया ही कह देते आज।।

ना कोई गिला है ना कोई शिकवा है, बस थोड़ी रिश्तों की बेबसी है 
लेकिन कहीं पहुंचने के लिए ,कहीं से निकलना ,ना तेरी ना मेरी बेबसी है। 
उम्मीदों की आंच पर, वादा है मेरा, दुआओं में नहीं हकीकत में होगा साथ 
नए रास्ते, नई सोच, नए सपने, नई ख्वाहिशें लिए ढ़ूंढ लेंगे गोशा फिर तेरे साथ।।
  
                            ।।गोशा - कोना ।।

साथ देने के लिए शुक्रिया 
    कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

Wednesday, February 8, 2017

।।नजरिया उम्र का नजर आया।।

POET Rajnish BaBa Mehta 



बिखर गई सारी कविताएं
रूक गया शब्दों का शोर
चलता नहीं अब स्याहियों का जोर 
ख्वाबों और कल्पनाओं का मेल रहा पूरजोर।
बीते पन्नों पर नए रंग से फिर भरना है
नए शब्दों के साथ नई लाइनों पर चलना है
छोड़ कर कहानियां फिर कविताओं के संग नाची है
रिश्तों की बेमेल बुनियादी बातों के संग फिर सोची है।
अकड़ी उगलियों में आज जान भर तो आया
उठते दवात तो थे मगर कलम कहीं नजर नहीं आया
भेजा बुलावा, दस्तक भी रोज हुई, लेकिन हरकोई था पराया
उठाके मेज के संग रखी कुर्सियां तो नजरिया उम्र का नजर आया।
कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

Thursday, February 2, 2017

रात कोई मशवरा नहीं

रात कोई मशवरा नहीं 
दिन कभी खला नहीं 
Writer, Director Rajnish BaBa Mehta
वो शाम सी शिकस्त नहीं 
बनके नग़्म मैं, मुझमें अब नाज़िश नहीं ।।

ग़फलत में जिंदगी बेमान सी चलती नहीं 
रात के दरम्यां वो रास्तों पर सोती नहीं 
गोशा ख्वाब की थी या ख़्वाहिश गोशा नहीं 
पाने की तमन्ना में मैं, मुझसे गश़ की परवाह नहीं ।।

पूरा ख़ालिश सच है तो नादारी का डर नहीं 
सोच के साथ गैरत है तो उसे बात का फ़क्र नहीं
झांकती दीवारों के दरारों से बड़ा ख्वाबगीर मैं 
वक्त को बंद मुट्ठी में किया फिर जिक्र नहीं, नातर्स नहीं।।

वो रात कोई अब भी मशवरा नहीं 
वो दिन कोई अब भी खला नहीं 
वो शाम सी अब भी कोई शिकस्त नहीं 
बनके नग़्म मैं , मुझमें अब भी नाजिश नहीं।।  

               कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

नग़्म=संगीत का सुर । नाज़िश= घमंड, गर्व । ग़फलत= असावधानी । गोशा= कोना,एकान्तता । 
। गश़= बेहोशी,नशे में उन्मत्त । नादारी= गरीबी। ग़ैरत=शालीनता । नातर्स= कठोर हृदय।