Saturday, November 10, 2018

।। सवाल गरीब खुदा से ।।

Writer & Director Rajnish BaBa Mehta 

लफ्जों की, अगर-बेअगर लिबास होती
तो सिल देता तेरे चेहरे की सिलवटों को  
बदन की गोदराई तराशों पर यकीन होता
तो सिल देता, तेरी रूह--वफाई को ।।

अगली भीड़ वाली मोड़ पर मेरा मकसद तू नहीं तेरी ख्वाहिश है ,
अकेली रात में मेरा मिलना तूझसे नहीं, तेरी आजमाईश है ।।
झरोखों से झांकती नजर--नाश,बोलती सन्नाटों की फरमाईश है,
फरेब सी फांस है तनिक फासलों पर, लेकिन बदन की खूब आराईश है ।।

कुछ इस तरह पेश आउंगा अबकी बार 
जहां रूह--मलंगियत का जिक्र होगा हर-बार।।
जोगी जागकर कुछ कहेगा तो सब सुनेंगे 
जहां इबादती इश्क वाली खामोश बात सब सुनेंगे ।।

कभी- कभी बेअसर ख्वाहिशों में खराश ही जाती है 
छोटे सपने हो तो फिर खुद के अक्स में दरार ही जाती है।।
नादारी नादिमी बन अगर शोक है तो फिर काबा क़ल्ब हो जाता है 
ख़ानुम तेरी ख़िदमत--ख्याल से, ख़ालिश ख़लिश खामोश हो जाती है ।।

तेरे शिकवों की अब फिक्र नहीं
लेकिन मेरा जिक्र तो ऐसा ही होगा। 
टूटती बेदम सांसों पर निगाहें तो होगी 
फिर भी मेरा जिक्र पहले जैसा ही होगा ।।

जागते जोगी के ज़ख्म को जाने देना जिस्म के करीब से 
मुलाकात होगी जब पिछली वाली दरवाजों की दहलीज पर।।
 गमज़दा ख्यालों के खेल को खूब लुटने देना इस रकीब से 
लम्हों की होगी बारिश, तब सवाल पूछे जाएंगे खुदा जैसे गरीब से ।।


आराईश- सजावट नादारी= गरीबी। नादिम= लज्जाशील।क़ल्ब= दिल, आत्मा ख़ानुम(ख़ानम)=राजकुमारी ख़ालिस= शुद्ध, निष्कपट(मित्र) ख़लिश= चुभन, पीड़ा  

कातिबकहानीबाज

रजनीश बाबा मेहता