Thursday, June 11, 2015

सांसो में ज़िंदगी

Rajnish BaBa Mehta 
कुछ कहानी, कुछ निशानी 
ऐसा लगता है खामोश जिंदगानी।।
उलझा है वक्त लम्हों में 
ठहरी है सांसे हवाओं में ।।

                     क़ातिब 
               रजनीश बाबा मेहता 

संभालो ज़िदंगी

ज़िंदगी खुद से सिखाती है
राहों तले खुद को चलाती है l
वक्त ही तो है जो थामे है
सपनों की उस डोर को l
वरना रेत सी वो दिखती है
फिसलने का डर भी खूब है l

                             

                         
कातिब 
Rajnish BaBa Mehta