Sunday, September 28, 2008

हम


हम


भटकते है मुसाफिरों की तरह ज़िंदगी में हम
मंजिलों को ढूंढते है मुसाफिरों की तरह ज़िदगी में हम
हालातों से जूझते हैं मजबूरों की तरह ज़िदगी में हम
काँटों के बीच चलते हैं गुलाबों की तरह ज़िदगी में हम
क्या ऐसा ही चलता ही रहेगा इस बारे में सोचते क्यों नहीं हम
ऐ खुदा निजात दिला दे इन मुश्किलों से तेरे बंदे
है हम।


----रजनीश कुमार

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