Friday, September 13, 2019

।। मसर्रत-ए-महफ़िल ।।



WRITER & DIRECTOR RAJNISH BABA MEHTA



ख्वाबों के करीब से कुछ रास्ते यूं ही गुज़र गए 
फासलों के बीच कुछ मुसाफिर यूं ही रह गए। 
बरसों बाद सामना हो ही गया मसर्रत-ए-महफ़िल में
सलमाती ज़बान लिए इस बार भी यूं ही खामोश रह गए। 

अरसों पहले जिसकी जिक्र में फिक्र हुआ करती थी, 
उम्र की रेल पर चढ़कर सफर की गीत गाया करती थी, 
खो जाने के ख़्याल से जिसकी शामें लम्बी हुआ करती थी, 
आज वही परदानशीं होकर बेफिक्री का आलमी गीत सुना रही थी। 

उस रोज वक्त की दरख़्त तले हर हौसला यूं ही कमजोर था,
लेकिन सियाह समंदर पर रेंगती लहरों की धार पुरजोर था। 
खो रही हसरतें हृदय की, फिर भी जीवन प्रवाह का अकेला शोर था,
जिस्म पर कस्बाई लिबास लिए,उजालों में भी घटाएं घनघोर था।। 

संघर्ष उस मुक्त वाले मार्ग का है, जहां का दरवाजा हमेशा से खुला था,
शंख फूंकता अस्त सहस्त्र नंगे बदन, जिस पर चला वो आखिरी मार्ग था। 
विकल मिट्टी का मानव जो रो रहा, सदियों पुरानी अकेली रीत निभा रहा,  
राख बनकर धुएं में जो खो गया, वो इस मिट्टी का ही इकलौता रिवाज था।

कातिब & कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता
कहानीबाज रजनीश बाबा मेहता 

Wednesday, September 4, 2019

।।कोई ख़्वाब सा, तो कोई रूह सा है।।

Writer & Director Rajnish BaBa Mehta 
कोई ख़्वाब सा, तो कोई रूह सा है  
आज इस भोर में क्यों कोई मग़रूर सा है ।।
क्या कहूं लफ्ज़ ख़ुद में लाल है
तेरा वो छोटा वाला इश्क़ यूं ही बेमिसाल है।। 
लौट आना कभी तंग गलियों में
जहां हर किसी को सिर्फ तेरा ही ख़्‍याल है ।।
बरसों बीती ख़ुश्क रातों में,
जमाने बाद जली रोशनी बंद दरवाजों तले, फिर भी मन में सवाल है।।
ख़्वाहिशें राख कर दी अलाव में
नंगे पांव नापता रहा राहों को,फिर भी ना जाने क्यूं तुझसे ही लगाव है।।
सारी उमर गुजर गई इम्तिहान में
क्यों तेरी अक्साई ज़िद की ईश्क कभी ना मिली मुझे दान में।। 
देखता हूं तेरी अक्स को ख़तों में
रंक था लेकिन राजा बनकर कभी झांक ना पाया खुद की गिरेबान में।।
तेरी याद में रातें रोती है दिन में
उसी अंधेरी गलियों से गुजर रहा हूं,क्या अब भी तू बसती है इसी आसमान में।।
लो तेरी पाज़ेब को रख दिया दरख़्त में
अब तो लौट आओ काजलों से सने आंखे लिए, मेरे इस अधकच्चे मकान में।।
गुज़ारिश गुनाह है ईश्क--फ़रमान में,
सालती रही तेरी सांसे, सो गई हर ज़ख्में, अब भी ना जाने कौन है तेरे ध्यान में।।
मर्सिया मर्म है सिर्फ़ मयस्सर मौत में,
ईश्क की कगार पर खड़ा, खुद ही हूं ख़ुदा, सारी जिंदगी गुजर गई इसी गुमान में।।

उन धुंधले अफ़सानों की बात पर अब कोई रोया ना करेगा
मौत के पार उमर की लिहाज पर अब कोई सोया ना करेगा ।।
फैसला फ़ासलों की फ़िराक पर अब कोई फिक्र ना करेगा
बात जज़्बात की ज़ेहन में होगी तो तेरा कोई ज़िक्र ना करेगा।।

कातिब & कहानीबाज 

रजनीश बाबा मेहता