Monday, October 27, 2008

क्या हुआ...तुम्हरी जिंदगी को...


क्या हुआ...तुम्हरी जिंदगी को...




हर राह को जलाती धूप के समान है तेरी जिंदगी
खामोश धड़कन की एक तलाश है तेरी जिंदगी।
क्यो ढ़ूढ़ते हो तुम अपनी परछाई को अंधेरों में
क्यों देखते हो तुम सपने दिन के उजालों में ?
क्यों वास्ता नहीं है तुम्हारा हकीकत से
क्यों दूर रहते हो तुम दिन के उजालों से ?
हर राह पर चलने की फिक्र है तुम्हें
हर ख्वाब को पूरा करने की फिक्र है तुम्हें।
फिर भी रात के अंधेरों में भटकते हो तुम,
क्यों नहीं, एक चाहत लिए, जिए जा रहे हो तुम।
तुम्हारी जिंदगी तुम्हारे लिए नासूर बनती जा रही है,
फिर भी न जाने हकीकत से क्यों दूर हो तुम।


-----रजनीश कुमार

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