अब पत्रकार बनता जा रहा हूं मैं...
कलम की धार पर चलता जा रहा हूं मैं
शब्दों के बाण की बौछार सहता जा रहा हूं मैं
सियासत की गलियों में हर बार जा रहा हूं मैं
खेल के मैदानों में बार बार जा रहा हूं मैं
नेताओं की फितरत को रोज झेलता जा रहा हूं मैं
खिलड़ियों की नफरत को रोज सहता जा रहा हूं मैं
इंसानी जिंदगी को मशीनी बनते देख रहा हूं मैं
क्योंकि अब पत्रकार बनता जा रहा हूं मैं।
शब्दों के बाण की बौछार सहता जा रहा हूं मैं
सियासत की गलियों में हर बार जा रहा हूं मैं
खेल के मैदानों में बार बार जा रहा हूं मैं
नेताओं की फितरत को रोज झेलता जा रहा हूं मैं
खिलड़ियों की नफरत को रोज सहता जा रहा हूं मैं
इंसानी जिंदगी को मशीनी बनते देख रहा हूं मैं
क्योंकि अब पत्रकार बनता जा रहा हूं मैं।
----------रजनीश कुमार
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