जाति क्या है ?
जो जाती नहीं वही 'जाति' कहलाती है। हर मनुष्य की फितरत है कि वो अपनी जाति के बारें में कभी न कभी जरूर सोचता है। अगर कोई इंसान यह कहता है कि मैं 'जाति ' विशेष को नहीं मानता हूं, तो वह अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा झूठ बोल रहा है। कभी न कभी इंसानी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ जहां वो अपने स्वार्थ के बारें में ही सोचता है। तब वो अपने सारे वसूलों को ताक पर रखकर अपने और सिर्फ अपने ही बारें में या फिर लाभ के बारें में ही सोचता है। यानि इंसान भले ही कितना बड़ा ही क्यों न हो वह अपनी जाति के बारें में कभी न कभी जरूर सोचता है। तुम भी सोचना मेरे दोस्त क्योंकि मैं नहीं सोच रहा हूं।
-रजनीश कुमार
2 comments:
मैं नही जानता कि आप का ' जाति ' चिंतन वास्तव में एक गंभीर चिंतन था ,या मात्र बैठे ठाले कि जुगाली थी ? फ़िर भी मैं जो जानता हूँ उसके आधार पर बता रहा हूँ कि " जाति " शब्द संस्कृत के " ज्ञाति " शब्द का ही प्रकृत या अपभ्रंश है | इसका भावार्थ है कि एक ही वंशावली के लोगों का परस्पर एक दूसरे का ज्ञान होना और उन्हें ही सामूहिक रूप से 'ज्ञाति ' बाद में जाति कहा गया ] वर्ण व्यवस्था में गोत्र से वर्गी करण किया जाता था उसके पीछे ठोस
एवं व्यवहारिक कारण थे उप गोत्र उत्पति का क्षेत्र बताता है | यूनानियों से रब्त-जब्त बदने के साथ -साथ ही लोग अपनी bवंशावली के आधार पर अपनी पहचान बताने लगे ,क्यों कि ,यूनानी लोगों के समाज म कुल गोत्र कि अवधारणा नही ||
"कालचक्र"
चौपाल
"झरोखा "
"कबीरा"
"जाति"... हिंदुस्तान की सबसे बड़ी दुविधा ही जाति है। खैर सिर्फ एक पंक्ति में तुमने काफ़ी बड़ी बात समेट दी कि "जो जाती नहीं वो जाति है"...
एक और बात... जाति के साथ जीना कोई बुरी बात नहीं सिर्फ ये ध्यान रहे कि किसी तरह की कट्टरता से न बंध जाएं।
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