Saturday, October 4, 2008

दाखिला लेने की चाहत




दाखिला लेने की चाहत



याद है मुझे कॉलेज के बाद का वो दिन,
आगे की पढ़ाई जारी ऱखने का टेंशन।
हर कोई दाखिला ले रहा था एम.ए. और एम.बी.ए. में,
मुझे तो दाखिला चाहिए था सिर्फ पत्रकारिता में।
हर कॉलेज, हर विश्व विघालय का चक्कर लगाता था मैं,
वो दिल्ली में गर्मी का दिन जून के महीने में,
वो दाखिला लेने की चाहत मजबूत बनाती थी मुझे।
फार्म खरीदने के लिए लगती थी लंबी कतार,
मगर मजबूत किस्म के लड़को की नहीं होती थी कोई कतार।
आखिर किसी तरह नंबर आता फार्म खरीदने के लिए पैसे बढ़ाता,
काउंटर वाला भी खुदरे पैसे के लिए सभी को तड़पाता।
पर वो दाखिला लेने की चाहत मजबूत बनाती थी मुझे।
फार्म खरीदकर पेड़ों के नीचे बैठता था मैं,
मगर हवा के गर्म थपेड़ों से घबराता था मैं।
वो गर्म हवा हमें एहसास दिलाती थी, अपने काबिलियत की,
वो गर्म हवा की चुभन से सिहर उठता था मैं।
सोचता था कितनी मुश्किलें हैं हमारी जिंदगी में।
मगर वो दाखिला लेने की चाहत मजबूत बनाती थी मुझे।
फार्म खरीदकर घर जाने के लिए बस पकड़ता था,
खिड़की के पास खाली सीट देखकर जल्दी से बैठता था।
जब बस चलती फिर वही गर्म हवा चेहरे से टकराती,
फिर वही मजबूरियां हमें याद आती ।
मगर वो दाखिला लेने की चाहत मजबूत बनाती थी मुझे।


-----रजनीश कुमार

1 comment:

Unknown said...

is din ko yaad rakhna, kaphi
trakki karoge...........