तुम होती तो...ये जाम न होता...
कभी कभी दिखती थी वो मुझे शामों में
मैं तो खोया रहता था उसकी यादों के जामों में।
कर नहीं पाता अपने मासूम मुहब्बत का इजहार इन फसानों में,
हर पल दिखती है उसकी तस्वीर इन जमानों में।
आवाज है जख्मी फिर भी गाता हूं उसे अपने गानों में,
तकदीर की लकीरों को ढूंढता हूं अपने हाथों में,
दर-दर भटकता हूं तेरे प्यार में,
फिर भी दर्द न होता इन पांवों में।
अगर तू साथ होती तो आज न होता मैं इस मयखानें में।
अगर तू साथ होती तो आज न होता ये जाम मेरे हाथों में।
------रजनीश कुमार
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