Saturday, November 29, 2008

गलियारा यादों का


गलियारा यादों का


कॉलेज से पास होते ही सभी को भूला
लेकिन एक चेहरा अभी भी याद है
काश वो चिट्ठी न आती तो वो याद भी न आती।
डाकिये की आवाज अभी भीं गूंज रही है मेरे कानों में
‘साहब जी किसी मैडम ने आपके नाम से ख़त भेजा है’
मैडम से मेरे जेहन में एक नाम ही गूंजा
क्या मां ने भी खत भेजना शुरू कर दिया।
लेकिन हाथ में लिफाफा लिए मैं ठगा सा रह गया
कि डाकिये ने तो मेरी जिंदगी में नया पैगाम दे गया।
खुशबू से भरा वो ख़त देख मुझे वो दिन याद आया
जब वो मेरे हाथों में हाथ लिए कॉलेज की गलियों में घूमा करती थी।
हर दोस्त की निगाहों से बचने की कोशिश में रहता था मैं
हर घड़ी उसके बिछुड़ने के डर से रोया करता था मैं।
लेकिन आज न तो मेरी आंखों में आंसू है
न ही मेरे मन में उसकी य़ादों का बसेरा।
हर पल खिलती कलियों सा उसका चेहरा
हंसी में खनकती एक अजीब सी मिठास
जिसे मैं आज भी महसूस कर सकता हूं।
लेकिन ये ख़त मेरे दिलोजान पर छाया हुआ है
तेरी हर एक अदा ऐसा लगता है मेरे जाम में डुबोया हुआ है।
तेरे आने की आहट आज भी सुनने को बेकरार हूं
क्या करूं तेरी य़े खत दीवार बनकर जो खड़ी है।
तू जन्नत में रहकर भी मुझे याद कर रही है
एक मैं हूं जो रोज तूझे मयखानें में य़ाद करता हूं।
तू उस डल झील के किनारे जाकर मुझे याद करती होगी
मैं यहां तूझे अपनी जामों में छलकता देख याद कर रहा हूं।
अपने शिकवे शिकन को तुम दूर कभी न करना
वरना वो कॉलेज की यादें अधूरी रह जाएगी।
वो कॉलेज की गलियां सूनी रह जाएगी।

---------रजनीश कुमार

2 comments:

Himanshu Pandey said...

बेहतर अभिव्यक्ति .

Anonymous said...

अरे वाह! रजनीश बाबू, क्या लिखते हो भाई.. लगता तो है कि जनाब पत्रकार है.. भाई बहुत जिम्मेदारी और जोखिम भरा काम है.. और कहाँ ये प्यार - मोहब्बत के चक्कर में फंस गए..

परिंदों की तरह उड़ना चाहते हो गुरु तो इश्क के चंगुल में मत फंसो......उफनती नदियों की तरह बहना चाहते हो तो गुरु पत्रकारी छोड़नी पड़ेगी.. उधर मुश्किल है.. बड़ी बेडियाँ हैं...पर अंत में तुमने सही कहा है.. कि ...इंसानी जिंदगी में बहुत मुश्किलें है...लेकिन सोच लो तो क्या मुश्किल है...अगर मुश्किल है तो नामुमकिन नहीं..

लगे रहो.. बहुत-बहुत .. शुभकामनाएं