एक पल के इंतजार में चलता जा रहा हूं मैं
अपनी आवाज को सुनने की चाहत में जिए जा रहा हूं मैं।
वो रहगुजर भी मेरे इंतजार में पलकें बिछाए बैठी है
जिसके आखिरी छोड़ पर मेरी मंजिल मेरे इंतजार में बैठी है।
अपने आप को ढूंढने की फिराक में हर पल गुम होता जा रहा हूं,
अब तो तुम्हारें आने का आसरा भी नही दिखता
फिर न जाने क्यों मैं शब्दों में गुम होता जा रहा हूं।
धीरे धीरे धुंधली पड़ती जा रही है तेरी यादें
अब तो शब्द ही जीने का सहारा बनता जा रहा है।
----रजनीश कुमार
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