Monday, March 30, 2009

सारी बंदिशों को तू तोड़ दे


ऐ मुसाफिर....तोड़ दे बंदिशों को।


चलते हुए मुसाफिर तू बता क्या है तेरी रज़ा

क्यों धूप छांव में चल रहा तू

क्यों अपनी मंजिल को मुश्किलों में डाल रहा है तू।

हर उन बंदिशों को तू तोड़ दे

हर उन रास्तों को तू नाप ले

जिसपर चलने की हरपल तेरी मंशा रही है।

ऐ मुसाफिर तू न सोच मेरे बारें में

जिंदगी एक खेल है जहां सोचना है तूझे अपने बारें में।

हर कदम पर हर मोड़ पर तू अपने आपको बचा

सामने वालों को अपनी कमजोरियों को न तू बता।

सच झूठ के इस दलदल में कभी न धंसना।

उस अन्त के शुरूआत के बारें में तू सोच

जिस शुरूआत के अन्त पर तू खड़ा है।

---------रजनीश कुमार