बस एक नज़्म.......!
एक नज़्म कहना है चाहता हूं मैं आपसे
अपने प्यार का पहला पन्ना सुनाना चाहता हूं आपसे।
दिल की बेरूखी तुम मुझे यूं न दिखाओ
अपने पहलू में बिठाकर अश्कों में देखना चाहता हूं आपको।
मिलनसागर की गीतों के सहारें जो पल गुजारा है मैंने
वो गीतों की मालाएं भेंट करना चाहता हूं आपको।
अपने दामन को बेदाग रखा जमाने से बचा के
उसी दामन की छांव में आसरा चाहता हूं मैं आपसे।
अपने निग़ाहों से तुम मुझे दूर न करना
वरना वो नज़्म भूल जाऊंगा
जो सुनाना चाहता था मैं आपसे।
अपने प्यार का पहला पन्ना सुनाना चाहता हूं आपसे।
दिल की बेरूखी तुम मुझे यूं न दिखाओ
अपने पहलू में बिठाकर अश्कों में देखना चाहता हूं आपको।
मिलनसागर की गीतों के सहारें जो पल गुजारा है मैंने
वो गीतों की मालाएं भेंट करना चाहता हूं आपको।
अपने दामन को बेदाग रखा जमाने से बचा के
उसी दामन की छांव में आसरा चाहता हूं मैं आपसे।
अपने निग़ाहों से तुम मुझे दूर न करना
वरना वो नज़्म भूल जाऊंगा
जो सुनाना चाहता था मैं आपसे।
-----रजनीश कुमार
No comments:
Post a Comment