भूखा बालक
चांदनी चौक के चौराहे पर बेचारे की तरह खड़ा था वो
लिए हाथ में काला पेपर औऱ पैरों में सफेद जूते
जून की चिलचिलाती गर्मी को महसूस कर रहा था वो
भरी भीड़ में बैचैन सा कभी चलता
तो कभी रूक कर सामने वाले को निहारता था वो।
उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था
मानों वर्षों से भूखा है वो.....
हाथ की छोटी छोटी उंगलियों को घुमाते हुए...
खुद को परेशान कर रहा था वो....
जब भी भूख लगती एक आवाज लगाता खुद को..
फिर थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करता नज़र आता वो...
रात घिरने को आई स्ट्रीट लाइट भी जल उठी...
फिर अपने घर की ओऱ जा रहा था वो...
रास्ते में इधर उधर देखता.....
शायद खाने को कुछ पा लेता वो.....
घर पहुंचने को आया फिर भी भूखा था….
चेहरे की परेशानी से भागने की फिराक में था वो...
घर पहुंच कर लालटेन की रोशनी में सोचने लगा था वो....
मां की आवाज आयी बेटा सोने का वक्त हो गया...
नन्ही उंगलियों से रोशनी को धीमा करके....
बिस्तर की तलाश में चल पड़ा था वो।
लिए हाथ में काला पेपर औऱ पैरों में सफेद जूते
जून की चिलचिलाती गर्मी को महसूस कर रहा था वो
भरी भीड़ में बैचैन सा कभी चलता
तो कभी रूक कर सामने वाले को निहारता था वो।
उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था
मानों वर्षों से भूखा है वो.....
हाथ की छोटी छोटी उंगलियों को घुमाते हुए...
खुद को परेशान कर रहा था वो....
जब भी भूख लगती एक आवाज लगाता खुद को..
फिर थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करता नज़र आता वो...
रात घिरने को आई स्ट्रीट लाइट भी जल उठी...
फिर अपने घर की ओऱ जा रहा था वो...
रास्ते में इधर उधर देखता.....
शायद खाने को कुछ पा लेता वो.....
घर पहुंचने को आया फिर भी भूखा था….
चेहरे की परेशानी से भागने की फिराक में था वो...
घर पहुंच कर लालटेन की रोशनी में सोचने लगा था वो....
मां की आवाज आयी बेटा सोने का वक्त हो गया...
नन्ही उंगलियों से रोशनी को धीमा करके....
बिस्तर की तलाश में चल पड़ा था वो।
-----रजनीश कुमार
1 comment:
true to life ...quite realistic
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