Tuesday, January 20, 2009

भूखा बालक


भूखा बालक


चांदनी चौक के चौराहे पर बेचारे की तरह खड़ा था वो
लिए हाथ में काला पेपर औऱ पैरों में सफेद जूते
जून की चिलचिलाती गर्मी को महसूस कर रहा था वो

भरी भीड़ में बैचैन सा कभी चलता
तो कभी रूक कर सामने वाले को निहारता था वो।
उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था
मानों वर्षों से भूखा है वो.....

हाथ की छोटी छोटी उंगलियों को घुमाते हुए...
खुद को परेशान कर रहा था वो....
जब भी भूख लगती एक आवाज लगाता खुद को..
फिर थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करता नज़र आता वो...
रात घिरने को आई स्ट्रीट लाइट भी जल उठी...
फिर अपने घर की ओऱ जा रहा था वो...
रास्ते में इधर उधर देखता.....
शायद खाने को कुछ पा लेता वो.....
घर पहुंचने को आया फिर भी भूखा था….
चेहरे की परेशानी से भागने की फिराक में था वो...
घर पहुंच कर लालटेन की रोशनी में सोचने लगा था वो....
मां की आवाज आयी बेटा सोने का वक्त हो गया...
नन्ही उंगलियों से रोशनी को धीमा करके....
बिस्तर की तलाश में चल पड़ा था वो।

-----रजनीश कुमार

1 comment:

Unknown said...

true to life ...quite realistic