Wednesday, February 8, 2017

।।नजरिया उम्र का नजर आया।।

POET Rajnish BaBa Mehta 



बिखर गई सारी कविताएं
रूक गया शब्दों का शोर
चलता नहीं अब स्याहियों का जोर 
ख्वाबों और कल्पनाओं का मेल रहा पूरजोर।
बीते पन्नों पर नए रंग से फिर भरना है
नए शब्दों के साथ नई लाइनों पर चलना है
छोड़ कर कहानियां फिर कविताओं के संग नाची है
रिश्तों की बेमेल बुनियादी बातों के संग फिर सोची है।
अकड़ी उगलियों में आज जान भर तो आया
उठते दवात तो थे मगर कलम कहीं नजर नहीं आया
भेजा बुलावा, दस्तक भी रोज हुई, लेकिन हरकोई था पराया
उठाके मेज के संग रखी कुर्सियां तो नजरिया उम्र का नजर आया।
कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

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