Thursday, February 2, 2017

रात कोई मशवरा नहीं

रात कोई मशवरा नहीं 
दिन कभी खला नहीं 
Writer, Director Rajnish BaBa Mehta
वो शाम सी शिकस्त नहीं 
बनके नग़्म मैं, मुझमें अब नाज़िश नहीं ।।

ग़फलत में जिंदगी बेमान सी चलती नहीं 
रात के दरम्यां वो रास्तों पर सोती नहीं 
गोशा ख्वाब की थी या ख़्वाहिश गोशा नहीं 
पाने की तमन्ना में मैं, मुझसे गश़ की परवाह नहीं ।।

पूरा ख़ालिश सच है तो नादारी का डर नहीं 
सोच के साथ गैरत है तो उसे बात का फ़क्र नहीं
झांकती दीवारों के दरारों से बड़ा ख्वाबगीर मैं 
वक्त को बंद मुट्ठी में किया फिर जिक्र नहीं, नातर्स नहीं।।

वो रात कोई अब भी मशवरा नहीं 
वो दिन कोई अब भी खला नहीं 
वो शाम सी अब भी कोई शिकस्त नहीं 
बनके नग़्म मैं , मुझमें अब भी नाजिश नहीं।।  

               कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

नग़्म=संगीत का सुर । नाज़िश= घमंड, गर्व । ग़फलत= असावधानी । गोशा= कोना,एकान्तता । 
। गश़= बेहोशी,नशे में उन्मत्त । नादारी= गरीबी। ग़ैरत=शालीनता । नातर्स= कठोर हृदय।




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