कॉलेज में मेरी यादें
वो फूलों की डाली वो पत्तों में कांटे
हर मोड़ पर बिछी है मेरी निगाहेंवो ख्वाबों की हकीकत वो यादों का बसेरा
हर गम में है बस तेरा ही तेरा सहारा
वो कॉलेज की गलियों में गुमनाम अंधेरा
हर कदम पर नहीं मिला मुझे साथ तेरावो बसों की पायदान पर बना रिश्ता मेरा औऱ तुम्हारा
फिर भी वो सांसों में नहीं दिखा अपनापन तुम्हारा
वो खाली सीढ़ीयों पर बैठ मैने किया लंबा इंतजार
वो तेरी परछाई की आहट ने मुझे किया था बेकरार
वो आखिरी दिनों में एक उम्मीद के सहारे जिया था मैने
न जानें क्यों हरपल तुम्हें ही सोचा था मैंने ।
रजनीश कुमार
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