जला दो जला दो उस लौ को जला दो
कभी बुझने न दो उस आग को
जो सीने में लग कर चिंगारी बनी हुई है
उस खामोश रातों को तुम जगा दो
जो वर्षों से सिमटी है अंधेरों की आगोश में।
उन गांवों की लाज तुम ऱख लो
जहां से भारत का सूर्योदय हुआ है।
अपनी जमीं को तुम बचा लो
अपनी खुद्दारी को तुम दिखा दो।
उस खाकी को अपनी अंगुली की ताकत तुम दिखा दो
जो वर्षो बाद तेरे दरवाजे पर दस्तक दी है।
कभी बुझने न दो उस आग को
जो सीने में लग कर चिंगारी बनी हुई है
उस खामोश रातों को तुम जगा दो
जो वर्षों से सिमटी है अंधेरों की आगोश में।
उन गांवों की लाज तुम ऱख लो
जहां से भारत का सूर्योदय हुआ है।
अपनी जमीं को तुम बचा लो
अपनी खुद्दारी को तुम दिखा दो।
उस खाकी को अपनी अंगुली की ताकत तुम दिखा दो
जो वर्षो बाद तेरे दरवाजे पर दस्तक दी है।
रजनीश कुमार "बाबा"
No comments:
Post a Comment