Saturday, May 16, 2020

।।रेत, रूह औऱ सुकून।।

Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta 

रेतीली जमीन की गरमाहट सांसों को जगा गई 
एक पल लिए क्या रूकाजिंदगी सबक सिखा गई  
कभी समंदर की गवाही देती ,ये  रेत अफ़सानों में समा गई
छूटे लम्हों की लकीरों पर, ना जाने क्यों अधूरी दास्तान छोड़ गई।।

बनाकर उसने मेरे संग रेत का महल
जाने क्यों बारिशों को खबर कर गई।।
मैं तपती रेत पर बिखरता रहा 
वो ना जाने क्यों सागर की बूदों में समा गई।

अब तो रेत की टीले सी है ज़िंदगी 
जो वक्त की आंधी, ज़र्रा-जर्रा उड़ा गई।
आखिरी बार मिली, कुछ खास रेतीली रिश्तों के दरम्यां 
जो अतीत की लिहाज़ में अपना ही अक्स छुपा गई।।

भरोसों के भंवर में किस्मत रेत सी, कुछ यूं ही फिसलती चली गई
जब तक उसने जीने का मतलब समझाया, जिंदगी ही निकल गई।
सोचता हूं सुलगती रेत पर नरम हाथों सें, दरिया--इश्क लिख दूं 
मगर बदकिस्मती रेत की, अब तो रूह से सुकून ही निकल गई। 

कहानीबाज & कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

No comments: