Tuesday, May 23, 2017

।।इंतजार तेरी ढ़लती उम्र का ।।

Writer, Director, Poet Rajnish BaBa Mehta


तुझको छुपाउंगा एक रोज चांद के तलवे तले 
तुझको रुलाउंगा एक रोज चांद के तलवे तले 
जो वेदा है मेरी संवेदनाओं को लाल लहू के तले 
उठ कर जाउंगा मैं हर रोज तेरी ढ़लती उम्र के तले ।।

अय्यार बनकर तेरी साए से टकराया था कई बार
ढ़हता गया मिट्टी का जिस्म ,लेकिन बिन आंसू नफ़्स रोया हर बार।
नामालूम बनकर बिस्तरों से लिपट पड़ा, तकिये तले तेरा रपट अभी भी पड़ा ,
छोड़ ज़िद जाने दे मेरी ज़द से, उलटे पांव आएगी बस आवाज आखिरी बार ।।

कहता रहा काश, जुगनुओं की जगमगाहट में लौट आओ फिर सांसों में 
क्यूं सिमट पड़ी है बंद मुट्ठियों की गरमाहट में, जाओ खो जाओ फिर आहों में  
मेरी नुसर्त मस्तक पर चमकेगी, तेरी घबराहट में, जाओ लौट जाओ दीवारों में 
पैमान है मेरा तुझसे, पयाम की सरसराहट में, जाओ पढ़ लेना मुझे अंधेरी रातों में ।।

ताखे पर बुलाउंगा चांद को गवाही देने, उस रोज की तरह 
मर-मर कर जिस्म को जिंदा करूंगा तेरे लिए ,हर रोज की तरह 
रखना याद, फ़ाख़िर नहीं फ़िदाई था उस चांदनी रात की तरह  
लेकिन नासूर लिए तूझे ज़िदा रखूंगा जुंगनुओं की तरह 
क्योंकि 
तुझको छुपाउंगा एक रोज चांद के तलवे तले 
तुझको रुलाउंगा एक रोज चांद के तलवे तले 
जो वेदा है मेरी संवेदनाओं को लाल लहू के तले 
उठ कर जाउंगा मैं हर रोज तेरी ढ़लती उम्र के तले।।

कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

नफ़्स= आत्मा।।नामालूम-अनजाना।।नुसर्त= विजय।।पैमान= वचन।।पयाम-संदेश।।फ़ाख़िर= अभिमानी।।फ़िदाई= प्रेमी

No comments: