Monday, August 12, 2019

।।वो कबीर है, या आखिरी फकीर है।।
































चिंतन चीर है, शरीर उसका प्राचीर है
शब्द तीर है, कविता उसका रघुवीर है।
रास्तों पर रोज चलता, खुद का वो राहगीर है,
लाल कफन में लिपटा, दुनिया का वो धर्मवीर है।।

सोच धीर है, मस्तक भुजाओं जैसी प्रबीर है
छन्न छंद नीर है, आकार चांद जैसा रूधीर है। 
मानुष वीर है, लेकिन सकल संसार में अधीर है
ख्वाब क्षीर है, लेकिन खुद में वो ख्वाबगीर है।। 

जिस्म पीर है, फिर भी ना जाने कैसी उसकी तासीर है
ज़ेहन से मीर है, फिर भी भरी महफिल में वो बधिर है
आंखे उसकी हीर है,ये बात कोई औऱ नहीं, कहता कबीर है
लाल रंग लिए शऱीर है,पहचान लो अब तो अपना ही फकीर है।।

तलाशता हूं खुद को लकीरों में, ये मैं नहीं, मेरी ही तकदीर है
टूटी उंगलियों पर लिखी है जो आयत, वो मेरी ही शरीर का प्राचीर है।
धुंधली किरणों की धुन में छेड़ा है जो राग रोशनी का, वो अपना ही कबीर है
लिए हाथ सारंगी ,मिला खड़ा हिमालय पर, वो अब तो आखिरी फकीर है। 

धुनी रमाए रास्तों पर रोज चलता, खुद का वो राहगीर है,
सूर्ख लाल कफन में लिपटा, दुनिया का वो अकेला धर्मवीर है।।
धुंधली किरणों की धुन में छेड़ा है जो राग रोशनी का, वो अपना ही कबीर है
लिए हाथ सारंगी ,मिला खड़ा हिमालय पर, वो अब तो आखिरी फकीर है।। 



कातिब &  कहानीबाज 

रजनीश बाबा मेहता 



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