Sunday, March 3, 2019

।।कब्र वाला मंदिर।।

POET, WRITER & DIRECTOR RAJNISH BABA MEHTA

हर साख वाली गुरूर जहां राख हो जाती है 
जहां हर सख्त वाली तख्त भी भंवर हो जाती है ।
महलों की जागीर यहां , मनहूस मातम मनाती है 
कब्र की जद में लेटे हैं , ख्वाबों को अब भी समेटे हैं।
किस्मत का फेर है कि, यहां कब्र भी मंदिर कहलाती है ।।

मासूम मखमली बदन तले लपेटकर, सदियों के लिए सोए हैं 
अपनों की भीड़ में लेटे हुए, ना जाने क्यों पूरी दुनिया से खोए हैं । 
ख्वाहिश-ए-ख़ाक हुई, जिस्म राख हुई, फिर भी अकेली आंखे जो रोए हैं
जली है चिताएं चौबारे पर बारी बारी, फिर भी बीज ना जाने क्यों बोए हैं ।
किस्मत का फेर हैं कि धूप तले आज भी, यहां कब्र ही मंदिर तले सोए हैं ।। 

कभी जो गुरूर गौरव था , कभी जो गुरूर आन था, कभी जो गुरूर गान था
अब सूखी मिट्टी तले वो गुरूर, श्मशान में बस सोती सिसकती शान था ।
महलों तले कभी इठलाती जिंदगी, अब वो मौत के सामने सिर्फ अपमान था, 
काश रोक लेता लम्हों को, रोक लेता सांसो को, जो आखिरी समर तेरा शेष था।  
किस्मत का फेर है कि, उस वीरान में अकेला तेरा कब्र , रूठे मंदिर जैसा ही था ।।

जो खुला घर छोड़कर जाएगा , ना कभी तू लौट कर आएगा 
सख्त वाली तख्त कि फिराक में, अब कभी पैबंद ना तू लगा पाएगा ।
सदियां शौक से सुनेगी तेरी दास्तान, जो तू अब मिट्टी का मूर्दा हो जाएगा 
जिंदगी की बिसात पर, चली है मौत आखिरी चाल, जब फिरदौस भी फना हो जाएगा ।
किस्मत का फेर है, कि फिर भी तेरा वो वीराने वाला कब्र,  मंदिर ही कहलाएगा  ।।

कातिब &  कहानीबाज 
रजनीश बाबा मेहता 




नवंबर 2018 में गोल्डन सिटी जैसलमेर की यात्रा के दौरान कई कहानियों को तराशने की फिराक में था। हालांकि अपने सबसे बेहतरीन दोस्त के साथ जैसलमेर में एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था, और इसी बहाने मुझे कहानीबाजी करने का मौका मिल गया। फिर क्या था जैसलमेर की हर गलियों की धूल मेरे पैरों पर चिपकती चली गई। हर गली में कोई ना कोई महल, औऱ उस महल के पीछे उसकी अनगिनत दास्तान। कुछ सुनी-सुनाई तो कुछ अनसुनी कहानियां अपने झोले में समेटते जा रहा था। इसी दौरान मैं एक ऐसे जगह पर जा पहुंचा जहां सिर्फ और सिर्फ मंदिर के गुबंद बने हुए थे और नीचे छोटा चबूतरा। एक पल के लिए तो लगा कि मंदिरों का शहर है कहानियां तो इसके पीछे होगी जरूर, लेकिन पता चला कि वो मंदिरों का शहर दरअसल जैसलमेर राजघराने का श्मशान घाट था । कितनी अजीब है मौत की परिकल्पना, औऱ कितने अजीब हैं उसके रिवाज। सोचने पर कभी कभी दम घुटने लगता है क्योंकि कुछ इंसान अपनी मौत में भी जिंदगी देखता है। मरघट में भी राजसी अंदाज में जीने की परिकल्पना करता है, लेकिन शायद उसे पता नहीं कि लिबास कोई भी हो, शरीर का आखिरी अंजाम मिट्टी ही है।  


JAISALMER YATRA ।।कब्र वाला मंदिर।।

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