Wednesday, September 7, 2011

सोच

सपनों की सड़कों पे नंगे पांव चलता हूं
ख्वाबों को हकीकत से कुछ यूं ही नापता हूं
जिंदगी की खोज में... जिंदगी मानो तमाशा बन गई
जहां बच्चों का खेल तो है
लेकिन भीड़ से शोर लापता हो गई
हाशमी मार्ग के हश्र पर अब तो रोना आता है
जहां हीरो समोसे के साथ चाय... तो ब्रेड पकौड़े पर ही जीता है
सपनों की उड़ान तो है ...लेकिन फर्श का पता भी... खूब पता है
जहां ना तो इमेल है...ना जीमेल....ख्वाबों में है.. तो सिर्फ फीमेल
फिर भी भागती जिंदगी को थामने की तमन्ना में जीता जा रहा हूं
हर ख्वाहिश को पाने की तमन्ना में....जहर का घूंट भी पीता जा रहा हूं
धीऱे-धीरे वक्त गुजरता जा रहा है...मंजर बदलता जा रहा है....
राहों से गुजरकर...मंजिल के फासले तो तय कर लिए
लेकिन भागती भीड़ के शोर ने...आज चुप्पी साध लिए...
वक्त के तकाजे तो हमने भी खूब देखे...
क्या करें आंसू भी हमने आंखों से खूब पिए
अब ना तो इंतजार है....न इंतजार की ख्वाहिश
क्योंकि सपनों के टूटने की आवाज नहीं होती
वक्त के मार की जख्म नहीं होती
आज तुम हो...तो हम हैं...
नहीं तो हमें जीने की आदत नहीं होती ।

रजनीश कुमार

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