Wednesday, February 11, 2009

अंधेरी रात.....?


अंधेरी रात.....?
देखो रात फिर घिर के आई है घनघोर अंधेरा लाई है....
दिल ने मेरा... आज चांद चुरा के लाया है.....
जुगनूओं की जगमग ने आज मुझे रास्ता दिखाया है...
चमकती पेड़ की टहनियों पर दिख रही है ओस की बूदें..
जैसे रात की मालाएं लिए है...ओस की बूंदें...
सूने आसमान की ओर तकती है...मेरी आंखे..
काली घनघोर रातें घूम रही है ...फैलाएं अपनी बाहें
रात में जगमग तारों की कहानी लिए
हवाओं ने नई दिशाओं में उड़ान भरी है...
इन अंधेरी रातों में रास्ता भी मुड़ना भूल गई..
चमकती बिजलियों की गड़गड़ाहट में
बारिश भी बरसना भूल गई....
खेतों की रखवाली करता वो किसना...
इन अंधेरी रातों में सोना भूल गया...
खेतों की पगडंडियों के बीच सन्नाटे में...
कोई चलना भूल गया.....
---- रजनीश कुमार

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