Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta |
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कारीगरों की खामोश बात किसी ने सुनी है अबतक
हुनर को तराशने का हौसला किसी ने देखा है अबतक !!
हर रोज घिसती किस्मत पर सवार होकर दौड़ा है कोई
सिलते लफ़्जों की तलहटी तले अब हर रोज चीखता है कोई
कहता है “कारीगर हूं साहब” मेरी हुनर की आवाज सुनता है कहां कोई।।
जो कभी जान ना पाओ तो तोल लेना तराजू के पलड़ों पर
हंस कर अपना दर्द छुपाना जानता हूं बस इसी कारीगरी पर।।
नसीब ऐसा कि कुछ को कलाकार, तो कुछ को बेकार नजर आता हूं
उंगलियों से गढ़ी तकदीर मगर अब जमाने के लिए बस बाज़ार ही नजर आता हूं।
किसी की आस पर गुजार रहा हूं जिंदगी, अब तो हर शख़्स को बेईमान नज़र आता हूं,
उम्मीदों की महफिल में हुनर का तमाशा रोज दिखाकर, अक्सर यूहीं खाली हाथ घर लौट आता हूं।।
कातिब & कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता
नार्थ इस्ट में हजारों कारीगर आज कम पैसों की वजह से अपनी हुनर से समझौता करने पर मजबूर हैं। लकड़ी से बने सामान हमारी घर की शोभा होती है, लेकिन वही सामान नार्थ इस्ट के गांवों में उसे बनाने वालों के यहां कौड़ियों के भाव मिलता है। आसान नहीं होता अपनी हुनर की सही कीमत को हासिल करना। मुश्किल है, बहुत ही मुश्किल, इतना मुश्किल कि ये समस्या कभी हल ना होगी। बात वहां की हो या यहां ही हालात एक जैसे हैं।
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