Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta |
आओ कुछ बातें और मुलाकातें हिंदी में हो जाए,
कुछ टेढ़ी लकीरों का आकार हिंदी में हो जाए।
बरसों से सिमटी सपनों का साकार हिंदी में हो जाए,
हर ख़्वाबों भरी ख्वाहिशों का संसार अब हिंदी में बसा लिया जाए।
हिंदी हमारी सभ्यता संस्कृति की पहचान जो है।
हिंदी हमारी गंगा जमुनी तहज़ीब की आन जो है।
हिंदी , हर हिंदुस्तानी का सम्मान है।
जिसके बिना हिंद थम जाए
ऐसी जीवनरेखा है हिंदी।
हर हिंदुस्तानी का अभिमान है हिंदी
हिन्दी, मादर-ए-हिंद की शान है , हिंदी।
इस धरा पर बहती संगम की हर धारा है हिंदी
जन-भेद का मतभेद मिटाती ऐसी हमजोली है हिंदी।
सात सुरों का साज सजाती, हर रंगों का मेल कराती है हिंदी
चारों दिशाओं का गठजोड़ , हर धर्मों का एक पाठ पढ़ाती है हिंदी।।
जीवन की आधार है हिंदी , सदियों पुरानी व्यवहार है हिंदी
ली है शपथ, खाई है कसम जिसकी, वो मातृभाषा है हिंदी।।
हिन्दी मेरी भाषा , हिन्दी मेरी आशा ,
हिन्दी का उत्थान करना, हर हिंदुस्तानी की जिज्ञासा।
हिंदुस्तान में समय-समय पर हिंदी को लेकर विरोध जब जब होता है, तब-तब मैं अपनी मातृभाषा में सिकुड़ना का एहसास महसूस करता हूं। इसकी वजह सिर्फ एक ही है, वो है अपने ही देश के अंदर हिंदी का विरोध। लेकिन आजादी के बाद हिंदी विरोध की जगह धीरे-धीरे सिकुड़ती जा रही है।
हिंदी की जबरस्त लोकप्रियता का एहसास मुझे उस वक्त हुआ, जब मैं नार्थ इस्ट की यात्रा के दौरान वहां के लोगों को इस भाषा को लेकर उत्साहित देखा। 7 राज्यों वाली नार्थ इस्ट अब 8 राज्यों मे तब्दील हो गई, लेकिन यहां हिंदी पहले के मुकाबले काफी मजबूत अंदाज में दिखाई देती है। अरूणाचल प्रदेश से लेकर मेघालय, सिक्किम से लेकर मिज़ोरम तक हर कोई अपनी लोकल भाषा का प्रयोग तो हर रोज करते हैं, लेकिन जैसे ही उनकी ज़ुबान पर हिंदी आती है , तो हिंदी के साथ एक मुस्कान भी आ जाती है। औऱ ऐसी बात नहीं है कि नार्थ इस्ट में हिंदी आज औऱ कल से बोली जाने लगी है, बल्कि आजादी के बाद सन् 1961 के आस-पास हिंदी ने अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया था। नार्थ इस्ट का अरूणाचल प्रदेश आठ राज्यों में सबसे बड़ा राज्य है। वहां करीब 500 से ज्यादा जनजातियां हैं, जिसकी वजह से वहां बोलियों की संख्या भी ज्यादा है, लेकिन आश्चर्य की बात यै हे कि अरूणाचल में हर जनजाति के लोग हिंदी बोलने को लेकर काफी सहज नजर आते हैं। इतना ही नहीं हिंदी के विकास को लेकर नार्थ-इस्ट के हर राज्य में एक राष्ट्रभाषा प्रचार समिति बनाई गई है। साथ ही कहीं-कहीं हिंदी साहित्य अकादमी भी है, जिनके जिम्मे हिंदी को बढ़ावा देने का है। यहां के कुछ लोगों से जब हिंदी में बात करने का मौका मिला तो फिर कुछ लोगों ने तो यहां तक जानकारी दे डाली कि, 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है औऱ 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस – International Hindi Day मनाते हैं। भाई गजब है, औऱ दूसरा गजब तो ये है कि तमिलान्डु में आज भी हिंदी विरोध के स्वर रह-रहकर गूंजने लगते हैं। 1960 के दशक के हिंदी विरोधी आंदोलन जब व्यापक रूप लेने लगा तो, केंद्र ने विवादित प्रावधान को खत्म कर दिया और आश्वासन दिया कि हिंदी किसी पर थोपी नहीं जाएगी, औऱ तब से कुछ ऐसे तबके पैदा हो गए जिनके लिए हिंदी हाशिए पर एक चंद्रबिंदु की तरह है।
कहानी बहुत है कहने को औऱ लिखने को। लेकिन कभी कभी इशारा समझना ही बेहतर होता है।
”हर कण में है हिन्दी बसी
मेरी मां की इसमें बोली बसी।।
मेरा मान है हिन्दी
मेरी शान है हिन्दी ।।
कातिब & कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता
Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta |
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