Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta |
रूह में रहता हूं , हर बात सांसों से कहता हूं ।
फ़िराक़ अश्क की नहीं, आइनों में यू हीं बसता हूं।।
सफर सांझ की हो, तो ही आखिरी बार डरता हूं
सुकून पाने की तमन्ना में, हरपल एक ही लफ़्ज कहता हूं।।
तुम मेरी ख़्वाहिशों को यूं हीं खाक ना बनने देना
जो राख वाली बातें तुम्हें सपनों में साख जैसा सिखाता हूं ।।
ढ़लती शाम वाली पंखों से बिना जुगनुओं वाली रोशनी जो जलाता हूं।
सितारों की ख्वाहिश में, अब अकेली उस चांद की बातें ही बताता हूं,
कि कभी-कभी बादलों से भी अक्स नजर आता है ।
उस धुंधली गुमनाम गलियों से जब भी झांकता हूं
टूटे हुए झरोखों पर हमेशा वही शख़्स नजर आता है ।
फेर लो रोशनी में बुझती चरागों का मुख
जो अब काली रातों में सिर्फ जज़्बात ही नज़र आता है।
अब बस
उम्मीद होगी….
इतंजार होगा…
पुकार होगी….
सफर सांझ की होगी…
हम मिले ना मिलें कभी ना कभी हमारी बात जरूर होगी।
Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta |
कातिब & कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता
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