Saturday, August 4, 2018

।। इश्क वाली मर्सिया ।।


सदियों से दार सी है मोहब्बत, हुस्न--ज़ार के मेले में 
ख़्वाहिश--ऱाख सी है मोहब्बत,भरी जिस्मों के अकेले में ।।
खुदा का खौफ़ है, कि इबादत फंसा है फकीरों के झमेले में 
सोती रूह--राख भी रोती है, इश्क के मज़ारों पर अकेले में ।।

सुना है कैस की कब्र पर रोती है लैला, रूमी की बातों पर 
कफ़न की क़ाबू में सोई है सनम, अल्लाह की झूठी इरादों पर।।
तपती खंजर की तपिश याद है, फिर भी यकीन तेरी फरियादों पर
टूटा है जिस्म का हर कोना, लूटा है तेरे जनाज़े--जुनूं का रोना 
क़यामत क़ौम की होगी, जब परियां रोएगी मोहब्बत की लाशों पर।।

बीत गई बातें, गुजर गई रातें, सो गई हल्की सांसें, जिस्म में बची ना आहें 
फिर भी कहता है रूमी, मोहब्बत तेरा शुक्रिया, कि तूने जीना सीखा दिया 
 मोहब्बत तेरा शुक्रिया, कि तूने हर लम्हों में मुझे मरना सीखा दिया ।।
 इबातन अगर इश्क है, तो तूने मुझे आदतन फनां होना सीखा दिया 
क़फ़स की कैद में क़ातिल होकर भी, तूने दुआओँ में रहना सीखा दिया 
शम्स लिए कब्र में सोया रूमी, कि तूने दुनिया को अकेले जीना सीखा दिया।।

लफ़्जों--लाल होगी सदियों तक, फिर भी मोहब्बत दार पर होगी सदियों तक 
ख़ुदा जब-जब ख़ामोश होगा, तब-तब फ़िदाई राह सी ढ़ूढ़ेगी तूझे सदियों तक ।।
नंगे पांव वाला क़ाफिला तो होगा ,लेकिन नफ़्स तलाशेंगे तूझे,आखिरी रूह की गुलामी तक 
खोज लेना मर्सिया मौत की जिंदा जिस्म लिए, वरना इश्क रोएगी अपनी आखिरी मौत तक ।।

                                                                                                कातिब & कहानीबाज
                                                                                              रजनीश बाबा मेहता
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दार-फांसी।।कैस-मजनूं।।रूमी-महान उपदेशक।।क़फ़स-पिंजरा।।फ़िदाई-प्रेमी।।मर्सिया-शोक-कविता ।।

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