POET, DIRECTOR RAJNISH BABA MEHTA |
सफेद सी जिस्म का लिबास लिए , मगर सांसों में हल्की सी आस लिए
जिंदा है जान उसकी उदास मन लिए, छोड़ फेरों की बात यूं ही चल दिए ।।
नाक़द्र बन पहलू में यूं ही सिमट जाती, हर बार नाक़ाबिल की हल्की फिक्र किए
अज़ीम ख्वाहिश है उस ख्वाबशानी की, क्यों लेटी है कब्र पर यू हीं सफेद चादर लिए।।
हर लफ्जों में इश्क वाली शिकन हैं, मगर बातों में ना जाने क्यों उदासी लिए
छोड़ गई डगर पनघट की राहों पर, मगर आंखें चमकती रही ना जाने क्यों अश्क लिए।।
समेट लेती है संसार अपनी शब्दों में, छोड़ जाती है अधूरे अफ़साने हर लफ्जों में
अर्जमन्द बनने का फैसला है उसका, नातर्स बन सिमटी है गोशे में, बेलिहाफ नौजवानी लिए ।।
छोड़ आया उसे सपनों के सिरहाने तले, फिर भी खोज रही है वो ख़िदमत की तलाश में ख़ुदा लिए
आखिरात में सफेद -स्याह रक्त होगी, लंबे बिस्तरों पर अधूरी नींद तलाशेगी मौत लिए ।।
आराईश अपनी बदन की समेट ना पाती है, इफ़्तितखार की तलाश में इनाद क्यों पालती है
खुद की ख्वाहिश में ज़ियारत ज़ख्म समझ, इस कातिब के किस्से में हरबार क्यों चली आती है ।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
- अर्जमन्द= महान ।।नातर्स= कठोर।।गोशा-कोना।।नौजवानी= यौवन।।आराईश= सजावट।।इफ़्तितखार= मान, ख्याति।।इनाद= विरोधता, दुश्मन।।
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