Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta |
गुजरे हुए लम्हें अदम-ए-राख़ का अफ़साना छोड़ गया,
अमानत की ख्याल में वो लम्हें हक़ीकत का फ़साना छोड़ गया।।
हर रोज सुबह औऱ शाम होती, मानो उम्र अब धीमी आंच पर होती,
जो गुजर गया उस साख की तलाश में, सारा जमाना छोड़ गया ।।
अब तो दस्तक नहीं, मस्तक की टेक है, आने वाली हौसलाई सवेरों की,
ढ़ल गई सियाह रात, निकला है सूरज, अब बात होगी बौराई बयारों की।।
आक़िबत की फ़िक्र छोड़ अब तो वक्त आया, आज़िम वाली किस्सों की
ख़ता ख़त्म कर ख़फा छो़ड़ दिया, अब तो बात होगी नई वाली मज़ार-ए-ख़ुदा की।।
जो गुज़र गया वो मेरा था ही नहीं, जो आने वाला है उसे मेरे सिवा कोई पाएगा नहीं,
अंधी गलियों में अब कोई रोएगा नहीं, जो भोर वाली बात मेरे सिवा कोई सुनाएगा नहीं।।
नफ़रतों की धूप भले बदन को झुलसा गई, लेकिन दरिया-ए-राख में जलने से मेरे सिवा कोई बचाएगा नहीं,
नई महफिल में नए चेहरों का लगा मेला है, फिर भी लगा ले शर्त, मेरे सिवा कोई गले लगाएगा नहीं ।।
नई रोशनी में अफ़सानों की फिराक तले, अब तो शब्दों सा ढ़लता जा रहा हूं,
वक्त के पुराने दिये को बुझाकर, कहानीबाजी की मोम तले पिघलता जा रहा हूं।।
पूरा सफ़र आईनों की ज़द में है, फिर भी नई सोच तले अपनी शक्ल बदलता जा रहा हूं।
अज़ीम ज़माने की खुशबू खुद की रूह में लिए, अब तो धीरे-धीरे संभलता जा रहा हूं।।
#कातिब amp; #कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता
अदम = शून्य, अमानत = धरोहर आक़िबत = अन्त, अज़ीम = महान
|
No comments:
Post a Comment